अवध के गदर का इतिहास | Avadh ke Gadar ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.52 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विद्रोह का सून्रपात ६
दिया । वह समभ गए; विद्रोद हो गया । उन्होंने कट अपने
कंपड़े पहने; और अपने अफसरों *को घुलाकर देशी रिसाले
ओर तोपखाने को छावनी चलने की आज्ञा दी । वहाँ पहुँचकर
उन्होंने १६वीं सेना को पंक्तिबद्ध खड़ी पाया । वह फिर
सेचिकों को डॉँटने लगे । सेनिकों ने. देखा; उनके साथी
सेनिक उन पर गोली दागने को लाए गए हैं। इससे वे
ओर भी उत्तेजित हो “उठे । उसका रंग-ढंग देखकर उस
सेना के देशी अफ़सरों ने कनेल साहव को समकाया; और
कहा; आप अपने साथ की सेना को यहाँ से हटा ले जायें;
नहीं तो विद्रोह हो जायगा । वह मान गए; छर सेना को अपने
साथ, लेकर चले गए । मामला आगे नहीं बढ़ा । दूसरे
दिन से 'सेनिक भी पू्व॑वत् अपना काम-धाम करने लगे ।
परतु ३४वीं सेना अपनी बात पर अड़ी ही रही । हियरसी
साहव ने ६वीं फ़रवरी को उसके सेनिकों को चहुत समभाया;
परंचु जव ३४वीं के सेनिकों ने १६वीं सेना की उत्तेजना की.
वात सुनी; तब वे छौर भी तन गए । यह हाल देखकर २७वीं
माचें को दयिस्सी ने उन्हें फिर समभाया;, और कहा: तुम
लोग कार्तूंसों को दाँत से न काटो । उन्हें पहले चुटकी से नोच
डालो; तव भरो । पंरंठु वे नहीं माने; छोर विगड़े ही रहे |
इसके चारदद दिन बाद, २६वीं माचें को; एक देशी अफ़सर
ने दौड़कर सजंट मेजर हासन को खबर दी कि मंगल पाँड़े
नाम का एक सिपाही भरी बंदूक लेकर वारऊ से सिकला
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