अवध के गदर का इतिहास | Avadh ke Gadar ka Itihas

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Avadh ke Gadar ka Itihas by देवीदत्त शुक्ल - Devidutt Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विद्रोह का सून्रपात ६ दिया । वह समभ गए; विद्रोद हो गया । उन्होंने कट अपने कंपड़े पहने; और अपने अफसरों *को घुलाकर देशी रिसाले ओर तोपखाने को छावनी चलने की आज्ञा दी । वहाँ पहुँचकर उन्होंने १६वीं सेना को पंक्तिबद्ध खड़ी पाया । वह फिर सेचिकों को डॉँटने लगे । सेनिकों ने. देखा; उनके साथी सेनिक उन पर गोली दागने को लाए गए हैं। इससे वे ओर भी उत्तेजित हो “उठे । उसका रंग-ढंग देखकर उस सेना के देशी अफ़सरों ने कनेल साहव को समकाया; और कहा; आप अपने साथ की सेना को यहाँ से हटा ले जायें; नहीं तो विद्रोह हो जायगा । वह मान गए; छर सेना को अपने साथ, लेकर चले गए । मामला आगे नहीं बढ़ा । दूसरे दिन से 'सेनिक भी पू्व॑वत्‌ अपना काम-धाम करने लगे । परतु ३४वीं सेना अपनी बात पर अड़ी ही रही । हियरसी साहव ने ६वीं फ़रवरी को उसके सेनिकों को चहुत समभाया; परंचु जव ३४वीं के सेनिकों ने १६वीं सेना की उत्तेजना की. वात सुनी; तब वे छौर भी तन गए । यह हाल देखकर २७वीं माचें को दयिस्सी ने उन्हें फिर समभाया;, और कहा: तुम लोग कार्तूंसों को दाँत से न काटो । उन्हें पहले चुटकी से नोच डालो; तव भरो । पंरंठु वे नहीं माने; छोर विगड़े ही रहे | इसके चारदद दिन बाद, २६वीं माचें को; एक देशी अफ़सर ने दौड़कर सजंट मेजर हासन को खबर दी कि मंगल पाँड़े नाम का एक सिपाही भरी बंदूक लेकर वारऊ से सिकला थ्




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