पुरानी राजस्थानी | Purani Rajasthani
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.86 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)टू
संबंध कारक के लिए. चतुर्थी परसगं रह का प्रयोग । प्राचीन-पश्चिमी
राजस्थानी की परवर्ती अवस्था में बिलगाव इतना स्पष्ट हो गया कि यह
बतला सकना सत्यंत सरछ है कि अमुक पाॉइलिपि गुजराती प्रभाव में लिखी
गई है या मारवाड़ी झेछी में । प्राचीन-पश्चिमी-राजस्थानी इस प्रकार जिन दो
घाराभों में विभाजित हो गई, उनमें से गुजराती का प्रतिनिधित्व करनेवाली
'एक घारा सामान्यतः अपने मुलसोत के प्रति श्रद्धावान रही; जब कि मारवाड़ी
का प्रतिनिधित्व करने वाली दूसरी धारा ने उत्त मूल खोत से एक हृद तक
अपना बिलगाव प्रकट करने के लिए उन उजनेक नई विशेषताभों को ग्रहण
कर छ्या जो पूर्वी राजपुताना की पड़ोसी बोलियों और कुछ बातों में पंजाबी
तथा सिंधी से भी मिलती जुलती हैं । यही कारण है कि प्राचीन पश्चिमी
राजस्थानी भ तक केवल प्राचीन गुजराती कही जाती रही है । मारवाड़ी
की जो मुख्य विशेषताएँ_ प्राचीन-पश्चिमी-राजस्थानी की परवर्ती अवस्था में
वतमान थीं, वे निम्नलिखित हैं--
१, दर के स्थान पर इ होना, जैसे--कमाड के लिए किमाड,; खण
के छिए खिश, पणि या पण के लिए. पिथि ( झादि च० )।
२. करण कारक के लिए, संबंध कारक के विकारी रूप का प्रयोग तथा
संबंध कारक के लिए, करण कारक के विकारी रूप का प्रयोग, जैसे सगलाॉ-ही
दुक्खे, करण बहुवचन ( भादि च० ) ।
३, परस्गों का प्रयोग!--रहईं > हुईं > रई ; रउ, ताँइ :
४. सर्वनाम-रूप:--तुम्हें के छिप. तुद्दे; अम्ह, तुम्द के लिए. झाम्हों,
तुम्हाँ; तेह, तीह, जेह, जीह, के लिए; तीझँ, जीआँ ।
५. संयुक्त सर्वनामों का प्रयोग।--जे, ते के छिए. जि-को, ति-को |
६. गुजराती झापण,; आपणे के छिए, छाँप, झाँपे का प्रयोग, विशेषतः
लजब कि संबोधित पुरुष से युक्त उत्तम पुरुष वहुवचन के छिए साता है ।
७. संख्यावाचक विशेषण २, ३ के छिए. वे, त्रिणि के स्थान पर दो; तीन
जैसे रूपों का प्रयोग ।
८. सावनामिक क्रियाविशेषण कही के लिए, कदी का प्रयोग ।
९. सामान्य वर्तमान काल के उत्तम पुरुष बहुबचन के लिए--ब्र्ई के
स्थान पर--झाँ पदान्त का प्रयोग ।
१० सामान्य भविष्यत् काल के मध्यम और अन्य पुरुष एकवचन
के लिए--इसइ,--इसिइ के स्थान पर--इसि पदान्त का प्रयोग |
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