शेर ओ सुखन भाग 4 | Sher - O - Sukhan vol - Iv

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Sher - O - Sukhan vol - Iv by अयोध्याप्रसाद गोयलीय - Ayodhyaprasad Goyaliya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नई-पुरानी घारा लगा था । फिर भी 'दाग' के परिस्तार एवं प्रशसक बहुत भ्रधिक सख्यामे . थे । समस्त भारतमे उनके कलामकी घूम एव चाहत थी । दाग जन्नतनशी हुए तो उर्दू-ससारभमे सफे-मातम बिछ गई । भ्ौरोका तो जिक्र ह। कया, सर 'इकबाल'-जैसा गम्भीर दायर श्रपने उस्तादकी मौत पर टस-टस रो पडा । मिर्जा दागके उठते हीं “बज्मे-प्रदब'मे घोर भ्रन्धकार छा गया । मगर यह ग्रबेरा चन्द्रग्रहणके समान रहा । उनके योग्य शिष्योने झम-ए-महफिलको इस खूबीसे सम्भाला कि वह ॒टिमटिमानेके बजाय उत्तरोत्तर प्रज्वलित होती गई । प्राय समस्त भारतमे मिर्जा दागके शिष्य फैले हुए थे । उनके कलाममे भी वहीं उस्तादका शोख रग, बॉकपन, तेवर श्र हुस्ने-बयान था । दागके प्रशसकोने उनके दशिष्योमे भी 'दाग' का प्रतिविस्ब कलकता हुआ देखा तो वे बहुत शीघ्र दागके झभावको भूल गये श्ौर झपनी साहित्यिक झभि- रुचि उनके शिष्योद्वारा शान्त करने लगे । यूँ तो दागके शिष्योकी सख्या २०००के लगभग बताई जात है, परन्तु हम बहुत ही प्रसिद्ध-असिद्ध केवल ३० शिष्योका सक्षिप्त परिचय एवं कलाम दे रहे है। इस तरहकी छायरीका शझ्रब युग नहीं रहा हैं, केवल इतिहासका क्रम बनाये रखनेके लिए सक्षिप्त उल्लेख किया जा रहा है। ये सर्भ। शायर अपने-अपने क्षेत्रमे प्राय उस्तादीका मत्तंबा रखते रहे है श्र इनमे-से हर एकके सैकडो शिष्य हैं। यहाँ तक कि कइयोके तो शिष्य भी साहिबे- दीवान है ओर उनके भी अनेक शिष्य हैं । हमने स्वय भ्रपनी आँखोसे दिल्‍लीके भ्रनेक मुशायरोमे नवाव साइल, श्रागाणायर, बेखुद झ्रादिको गजल पढते हुए देखा है । जनता बहुत उत्साह पूर्वक उनके झ्रागमनकी प्रतीक्षा करतीं रहती थी । मुशायरेके सचालक स्वागतके लिए द्वारपर खडे रहते थे । पधारनेकी सूचना मिलते ही श्रोताश्रो- के हृदय भ्रानन्दसे खिल उठते थे । श्रन्दर झानेपर लोग बा-प्रदव खडे




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