रत्न परीक्षा | Ratna Pariksha

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अगरचन्द्र नाहटा - Agarchandra Nahta

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भंवरलाल नाहटा - Bhanwar Lal Nahta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका रेप द्वारा दादासाहब श्रीजिनकुशलसूरिजी के नेतृत्व में निकले हुए महाती्थ शत्नुझ्यय के संघ सें सम्मिलित हुए थे | ठक्कुर फेरू की प्राझृत रलपरीक्षा को हम अनुवाद सहित इस अन्थ में दे रहे हैं। पं० मगवानदासजी प्रकाशित वास्तुसार प्रकरण में र्लपरीक्षा की गाथा २३ से १२७ तक छुपी है जिसके बीच की ६१ से ११४६ तक की गाथाए धघातोत्पत्ति की हैं पाठ मेद भी प्रचुर है । इसके अनुसार रलपरीक्षा श्रन्थ १२७ गाथाओं का होता है पर इसकी बीच की बहुत सी गाथाए छूट गईं हैं और १३२ गाधाए होती हैं । पाठान्तरों को यथास्थान गाथांक सहित कोष्टक में दे दिया गया है | इसके पश्चात खरतर गच्छीय सागरचन्द्रसूरि शाखा के दर्शनलाभ गणि शिष्य मुनि तत््वकुमार कृत रत्नपरीक्षा ( सं० श्८४५ रचित ) फिर अंचल गच्छीय अमरसागरसूरि शिष्य वाचक रत्नशेखर कृत रत्नपरीक्षा भी दी गई है । परिशिष्ट में नवरत्न परीक्षा मोहरा परीक्षा (राजस्थानी गय में ) देकर कुत्रिम रत्नों ओर नवरत्नरस का नोट दिया गया है | हमारी प्रार्थना पर सुप्रसिद्ध विद्ान डा ० मोतीचन्दजी ने कृपा करके ठक्कुर फेरू की रत्नपरीक्षा का परिचय बड़े ही परिश्रम पूर्वक और विस्तार से लिख भेजा था जिसे हमने रत्नपरीक्षा दि-सस-ग्रन्थ संग्रह में प्रकाशित करवा दिया था पर हिन्दी पाठकों को विशेष लाभ मिले इस दृष्टिकोण से हम उसे इस ग्रन्थ में भी दे रहे हैं । हीरे की उत्पति स्थानों में बुद्धमट्ट मानसोल्लास रत्नसंग्रह और ठक्कुर फेरू की रत्नपरीक्षा में जिस मातंग स्थान का उल्लेख है इसका ठीक पता नहीं चलता पर बेलारी जिले के हम्पी स्थान में रत्नकूट में से संलग्न मातंग पंत की ओर संकेत हो तो




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