इत्सिंग की भारत यात्रा | Itsing Ki Bharat Yatra

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Itsing Ki Bharat Yatra  by श्री सन्तराम - Shri Santram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(रच ) कारों के भतिरिक्त राघव पाण्डवीयक के लेखक कविराज का भी प्रमाण देता है। कविराज| सच १००० के बाद हुआ है घर जयपीड़ की सृत्यु सन्‌ ७७६ ( या उप ) में हुई थी । झन्तत काव्याल्ड्वार-दृति के सम्पादक डाकूर कपलर (07. एछकफछाहा ) ने इसके रचयिता वामन को बारहवीं शताब्दी का ठद्दराने के पश्चात्‌ उसे काशिका-बृत्ति के लेखक वामन से अभिन्न सिद्ध करने का यत्न किया । प्रोफेसर गोर्डस्टकर ने वैयाकरण वामन को तेरहवीं शताब्दो से भी प्रघिक नूतन काल का माना । पिछले विद्वानों में से डाकूर ब्यूहज्र ने वामन को दसवीं शताब्दी मे बने ने बारददवीं शताब्दी में रक्खा नर शोनबग (300000678) ने यदद दिखलाया कि चेमेन्द्र ने उसका झवतरण ग्यारद्दवीं शताब्दो में दिया । इससे भारतीय साहित्य के पिछले इतिहास में भी काल-गणना # लिज्ञानुशासन काक्ता काशिकाबृत्ति का अ्तिसंस्कर्ता झार काव्याठडार का प्रणेता वा बत्तिकार वामन तीनों एक ही हैं । लिज्ञाचुशासनकारिका ७ की टीका तथा काशिका टीका २। ४1 २१ ॥ के तो वाक्य के वाक्य सदा हैं । करमीर सें काब्याठड्ार का जीणॉद्धार भटसुकुठ ( उगभग सन्‌ ८८०) ने किया था । झतः यह अन्थ इतना नवीन नहीं जितना पहले लोग इसे समसते थे ।--भ० दुत्त । इंडियन ऐण्टिक्करी १८८३ एू० २० में श्रींयुत पाठक इस कविता को झाय्ये श्रुतकीति शाके १०४५ की ठद्दराने का यल करते हैं । 1 एक कविराज को राजशेखर ( ढगभग सन्‌ द८०-४१० ) भी उद्धृत करता है ।--भ० दृत्त । पु श्रीयुत राईस झपने कनेस अन्थकार में इसकी तिथि सनू ३१७० स्थिर करते हैं । शेनबर्ग चेमेन्द्र का कविकण्ठाभरण प्ष्ठ ११ पादृ-टीका ।




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