गंगानाथझा - ग्रन्थमाला भाग 2 | Ganganatha Jha -Granthmala Bhag 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
390.68 MB
कुल पष्ठ :
735
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[- १९.
कर गया है कि इन्द्रियां भौतिफ हैं । वैशेषिक क्मेन्द्रियों की सत्ता स्वीकार नहीं करते
_ विनाश होता रहता है। इन मतों का खण्डन करने के बाद सौगत, चार्वाक झादि के
.. ह्वारा प्रस्तुत इन्द्रिय सम्बन्धी मतों की आलोचना की गई है ।
का खण्डन कर इनका विशिष्टादेत संगत स्वरूप स्पष्ट किया गया है । प्रसंगवद् आकाश
. '. ऑाबरणामाव रुप है, इस बौद्ध मत की आलोचना की गई है। प्रथिवी के निरूपण के
_. धवसर पर तम को पार्थिव द्रव्य माना गया है । यहाँ पर न्याय-वैशेषिक तथा प्राभाकर
मत की युक्तियों का खण्डन कर ग्रस्थकार ने यह दिखलाया है कि तम का द्रव्यस्व झागम
..... हेमी सिद्ध होता है।
.. खण्डन करके विदिष्टाद्रेत संमत काक्ष-स्वरूप का मिरूपण करने के बाद अ्रन्थकार ने
_... .हैं। अन्त में पुनः ब्रह्मांड के निरूपण के प्रसंग में नैयायिक-संमत शरीर-हाक्षण का
“........ बह परिच्छेद समाप्त किया गया है ।
ग २--जीव परिच्छेद
..... अन्यकार ने बौद्ध और शाकर अद्वेतवाद का. निराकरण करके श्त्मस्वरूप के विषय
न
'.... .. उपस्थापित कि
.......... प्रतिपादन करने के प्रसंग में भास्कर के मेदामेदबाद की आलोचना की गईं है
“इसी प्रकार आचार्य यादवप्रकाश मानते हैं कि क्मेन्द्रियों का प्रत्येक शरीर में उत्पत्ति और
पंच तन्मात्रा और पंच महायूत की सष्टि के प्रसंग में सांख्य और वैशेषिक मत...
.......... प्रकृति और प्राकृत तत्वों का निरूणण करने के बाद प्रस्थकार ने शेंवागम संमत
: घटबिंशातरवंवाद का खण्डन करते हुए शुद्ध तत्वों का ईद्वर में तथा अन्य तथवों का प्रांत
तत्वों में ही अन्तर्भाव दिखाया है । शैवागम श्रौर वैशेषिक संमत काल स्वरूप का.
पुनः तत्वों की संख्या के सम्बन्ध में मद्दाभारत का प्रमाण प्रस्तुत किया है। पंचीकरण
....... प्रक्रिया और ब्रह्मांड का निरूपण करने के बाद दिक्तत्व का सिरुपण किया गया...
.... है। विधिष्टादेत संमत पंचीकरण प्रक्रिया में नैयायिक लातिसंकर दोष की उद्घावना
...... करते हैं । इसके परिवार के प्रसंग में नेयायिक-संमत अवयविवाद का खण्डन किया गया...
_...... खंडन कर दारीर के मेदोपमेदों का वर्णन किया गया है। व्यष्टि जीवों के शरीर में...
: . .... इदवरशरीरता किस प्रकार निष्पन्न होती है, इस सम्बन्ध में कई मतों का उल्लेख कर.
पा प्रारम्भ में जीव का लक्षण दिया गया है। इसके बाद इसकी देह, इस्ट्रिय, मन,
लि हा प्राण, ज्ञान भादि से मिन्नना सिद्ध की गई है। शानात्मवाद के खण्डन के प्रसंग में
में यामुनमुनि के वचनों को उद्घ्त किया है। आत्मा में स्थिरता, ज्ञावृत्व, कब,
«..... स्वयंप्रकाशत्व, निव्यत्व, नानाख, और अणुत्व को सिद्धि के प्रसंग में श्रति, स्मृति और
याँ पर श्राइत यामुनमुनि, वरदनारायण, विष्णुचित्त, वरदबिष्णु आदि के मन्तव्य
किये गये हैं । जीव इइ्वर से भिन्न है तथा परस्पर भी प्रिन्न है, इसका...
... मोक-प् पि. के उपाय की चर्चा के प्रसंग में भक्ति भर, स्यासविद्या अर्थात्... ही
भा पी ' का निरूपण किया गया है । न्यासविद्या के मइत्व को बतलाने के बाद उत्क्रान्ति तर
.... और अ्चिरादि गति का. निरूपण किया गया है। मोक्ष के साधुल्य झादि मेदों के प्रसंग ही ग
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