भारत के स्त्री-रत्न [भाग-2] | Bharat Ke Stri Ratna [Bhag-2]
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.21 MB
कुल पष्ठ :
358
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कोौशल्या चू पड़ेगा। महाराज मुझे निर्वासित करके भरत को राजसिंहासन पर चैठाते हैं मुझे चौदह्द बष तक वनवास करना पढ़ेगा । कुल्हाड़ी का प्रहार होने पर कोमल वर्ष की जो दशा होती है इस जात को सुनकर कौशल्या की भी बैसी ही दंशा हुई स्वगंभ्रष्ट देवता की भाँति चह एकदम ज़मीन पर गिर पड़ीं और बेहोश होगई । रामचन्द्रजी ने अपने कोमल हाथों से शुभ्रूषी करके उन्हें बैठाया । खूब विल्ञाप कर लेने पर जब कौशल्या का चित्त कुछ स्थिर हुआ तो रामचन्द्रजी ने हाथ जोड़कर फहा-- माता आप व्याकुल न हों प्रसन्न मन से मुझे आशीर्वाद दीजिए जिससे बन में जाकर में राजी-खुशी रहूँ । मां प्रेम के वश होकर झाप डरिए नहीं झाएकी कृपा से वन मे भी आनन्द ही होगा और चौदह चरस वन मे रहकर पिताजी का चचन पालन करके छापके देखते-देखते मैं वापस आकर छापके चरणों के द्शन करूंगा । पुत्र की ऐसी कोमल और मीठी बाते सुनकर माता शान्त हो गईं । उनके हृदय का दुःख वणनातीत था । वह थर-थर काँपने लगीं । पर पुत्र का मुख देख अन्त में धीरज घर गद-गद स्वर से बोलीं-- पुत्र तुम तो अपने पिता को प्राणों के समान प्यारे हो और वह सदैव तुम्हारे काम देख-देखकर प्रसन्न होते हैं । उन्होंने ही तुम्हे राज्य देने के लिए शुभ दिन निश्चित किया था । ऐसी दशा से किस ्पराघ पर बन जाने के लिए फददा ? बेटा मुझे इसका असली कारण तो समभाओ । सूयबंश के लिए कौन आग बना है? तब रामचन्द्रजी ने विस्तार से सब बात कही । अब तो कौशल्या घर्म-सकुट मे पड़ गई । धर्म और स्नेह दोनों ने उनकी
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