उपनिषद् साधना खण्ड | Upnasaday Sadhana Khand

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47.6 MB
कुल पष्ठ :
548
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २४. ) थे । किसी के पुण्यात्मा होने की एक कसौटी यह्द भी थी कि तोग उसका व्नन ग्रहण करते है या नहीं । व्प्रथवंबेद ६ । द । २४ में कहां गया हे --+ सवों वा एप जग्घ पाप्सा यस्यान्नसश्रन्ति । च्र्थात् बद्दी व्यक्ति पुर्यात्माहे जिसका ग्न दूसरे खाते हैं । बाज भी पुरानी वह प्रथा देहाती क्षेत्रों में किसी रूप में प्रचलित है कि जिसके श्वाचरण झनुचित समझे जाय॑ उसके यहाँ का ्न्न जल ग्रहण न किया जाय । जातिच्युत होने में यही दंड मुख्य होता है | चास्मीकि रामायण में ब्न्त करण को देवता के रूप में प्रस्तुत करते हुए इसी प्रकार का प्रतिफल किया गया दे लिखा है -- यदन्त पुरुषों भवति तद॒न्ना स्तस्य देवता । अर्थात् मनुष्य जैसा अन्न खाता हे बेसा ही उसके देवता सात हूं। कुघान्य खाकर साधना करने से साधक का इछ भी आर हो जाता दे और उससे जिस प्रतिफल की श्राशा की राई थी चह प्राय नहीं थी प्राप्त होता | प्राण और उसका निग्ह न्रह्म की उपासना में प्राण साधना का अत्यधिक सहत्व हे। श्ात्मा इंश्दर का चंश होने से साक्षी ट्टा और निर्तिप्त है। उसकी शक्ति प्राण है छौर इस प्राण-शक्ति के छाघार पर ही जीव का सारा जीवनक्रस संचालित होता है । जेसे निर्लिप न्रह्म की क्रिया-शक्ति साया या प्रकृति हे उसी प्रकार जीव कीं सक्रियता प्र्ण-शक्ति में सम्निदिति है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...