क्रिया कोष | Kriya Kosh

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Kriya Kosh by पं. दौलतराम जी - Pt. Daulatram Ji

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पं. दौलतराम जयपुर की तेरहपंथ शैली में एक समादृत विद्वान थे। उन्होने वि॰सं॰ १८२३ में 'पद्मपुराण' नामक हिन्दी ग्रन्थ की रचना की जो पद्मपुराण के मूलश्लोकों का यह अनुवाद है। वे आधुनिक मानक हिन्दी के आरम्भिक साहित्यकारों में गिने जाते हैं।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्तोई, परंडा शौर चक्की लादिकी शिपासोंका वर्णन | रे पथ पापा व तप पिया मूये पद्के चर्मकों, चीरें जो चिंदार। ता चंडालईि परासिक, छोति गिन संसार ॥ १७० तो कैसे पावन भयो, मिल्यो च्मेसों जोहि । आमिप तुल्प मभू करें, याहि तजी बुध सोहि ॥ १७१ ॥ उपनें जीव अपार सुनि, जिनवानी उर धारि। जा पसुको है चर्म जो, तैसेही निरधारि-॥ १७२ ॥ सन्मूछेन उपनें जिया, तारतें जल तछू तेल-। रमें सपरसे त्यागिये, भाएं साधु अचेल ॥ १७३ | जसे सूरण कांचके, रूई वीचि घरेय । प्रगंटे अगनि तहां सही, रूई भस्म करेय ॥ १७४ ॥ तेसे रस अर चमक, जोगे. जिय उपंत्र । खादवारेफे सकल, घमेत्रच लुपिसत ॥ १७५ ॥ जीमत भोजनके विपें, मुदी जिनावर देखि । तमें नहीं जे असनकों, ते दुरखुद्धि विशेखि ॥ १७६) जे गैंदारपाठातनी, फली खौय मतिदीन । तिनके घट नहिं समुसि हैं, यह भापें परवीन ॥ १७७ ॥ रसोई, परंडा और चक्की आदिकी क्रिया्का वणेन । पौपडे । जा घर मार्ट रसोई होय, धारे चैंददा उचम सोय । बहारि परंडा ऊपर ताणि, उखली चाकी आदिक जाणि ॥ १७८ ॥ फटके नाज वीणिये जहां, चून चालिये भय्या 'तहां । अर िंद दौर लीमिये घीर, पुनि सोदकी ठाइर चीर ॥ १७९ तथा जहां सामायिक कर, अथवा श्रीजिनपूजा घर । इतने थानक चेदवा होय, दाखि श्रावकका घर साय ॥ १८८ ॥ चाकी अर उखली परमाण, रुकणा दीजे परम सुजाण । श्वान विलाव न चाट ताहि, तद थावककों धर्म-रहाहि ॥ १८३ ॥ मूसल घोय जतनसों घर, -निशि लोटन पीसन नहीं छाज त्तराज़ अर चालणी, चर्मतणी भविजन टालणी ॥ १८२ ॥। निशिकों पीस स्वॉट दले, जीवदया कह नाहिं पर । चादते गाले 'दून रदाय, चीटी आदि लगे तसु जाय रैट




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