श्रीमद्वाल्मीकि - रामायण सुन्दरकाण्ड - ६ | Srimadvalmiki Ramayana Sundarkand 6

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : श्रीमद्वाल्मीकि - रामायण सुन्दरकाण्ड - ६  - Srimadvalmiki Ramayana Sundarkand 6

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about चतुर्वेदी द्वारका प्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwaraka Prasad Sharma

Add Infomation AboutChaturvedi Dwaraka Prasad Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
तेन पादपमुक्तेन पुष्पोघेण सगन्धिना 1 ........सबतः संहतः चलो बमों पुष्पमयो यथा 1१ दे ..... छूत्नों से सड़े हुए खुगन्धयुक्त फूतों के ढेरें से घट पर्वत ढक ...थया घ्मौर ऐसा जान पड़ने लगा मानों घह समस्त पहाड़ फूलों _.. हीकाहे॥१३॥ प्न मा रो ... तेन चोत्तमवीर्येण पीड्यमान स पवत ......... सलिखं सम्यतुख्राव मदमत्त इच द्विपः ॥१४॥। जब चौर्यवान कपिप्रचर इनप्ान जी ने उस पर्थत का दबाया सब उससे घनेक जल को धघाराएँ निकल पढ़ी । वे घाराएं ऐसी जान पर ती थीं माना किसी मतबवाने हाथी के मस्तक से मंद बहुता हवा रृछ मे... ना प्रीड्यप्रानस्तु बलिना महेन्द्रस्तेन पवत? ररीतानिवतयामास काश़नाव्जनराजती ॥ १५॥ बलदान इन्नुमान जी से उस महेन्ट्रायल पचत के चांरें झोर धातुओं के बह निकलने से ऐसा जान पड़ता था माने पिघलाए हुए साने भर चाँदी को रेखाएँ खिंची हैं ॥१४॥ विधाला समन दिला ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now