कबीर जीवनी सिध्दांत और कवित्व | Kabir Jivani Sidhant Aur Kavitv

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Kabir Jivani Sidhant Aur Kavitv by महावीर सिंह गहलोत - Mahaveer Singh Gahalot

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की सद्दानता” के छिए हुआ है। इन स्थलों के चदादरण क्रमशः इस प्रकार दै--. . जी “कबीर सन मृतक भया, दुखल मया सरीर | तत्र पैँढे लागा हरि फिरे, कदत कबीर कबीर ॥ (२) ब नां कछु किया न करि सक्या, नां करणें लोग सरीर ! जो कुछ किया सु दरि किया, तायें मया कबीर” कबीर ॥* वीर? तुद्दी कबीर तू. तोरो. नाउ कच्रीरू। राम रतनु तब पाइमै लउ पहेले तजहि सरीरू ॥* कुछ स्थलों पर 'कदीर” शब्द का प्रयोग श्ञात्म सम्बोधन के छिए भी हुआ है। ऐसे स्थर्लों में कबीर” सर्वेनाम दी रदा है । जैसे कबीर पने 'झापको कदते हैं कि तन को चिरदद में फूंफ देसेवाठा कोई नहीं है। ये ज्ञानांध लोग इस रददस्य को नहीं जानते हैं; यदद मैं कूकि कर बराबर कद रददा हूँ । यथा-- कबीर ऐसा को नहीं इद्द तन देवे झूकि | अंघा लोगु न लानई रहो कबीर” कूक्ति ॥* _ चपयुक्त स्थत्त पर 'कबोर” का अथे तोढ़ मोदकर ईइवर को श₹ कवीर अन्यावली, साखी २ एू० ६४ । २ वद्दी, साखी १ पृ० ६१ | ३ चद्दी ( परिशिप्ट ) साखी १७७ प० रघ२। ४ फ० अ० ( परिशिष्ट ) सासख्वी १४ पू० २५० | (०




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