कबीर जीवनी सिध्दांत और कवित्व | Kabir Jivani Sidhant Aur Kavitv
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.07 MB
कुल पष्ठ :
189
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)की सद्दानता” के छिए हुआ है। इन स्थलों के चदादरण क्रमशः
इस प्रकार दै--. . जी
“कबीर सन मृतक भया, दुखल मया सरीर |
तत्र पैँढे लागा हरि फिरे, कदत कबीर कबीर ॥
(२) ब
नां कछु किया न करि सक्या, नां करणें लोग सरीर !
जो कुछ किया सु दरि किया, तायें मया कबीर” कबीर ॥*
वीर? तुद्दी कबीर तू. तोरो. नाउ कच्रीरू।
राम रतनु तब पाइमै लउ पहेले तजहि सरीरू ॥*
कुछ स्थलों पर 'कदीर” शब्द का प्रयोग श्ञात्म सम्बोधन के
छिए भी हुआ है। ऐसे स्थर्लों में कबीर” सर्वेनाम दी रदा है ।
जैसे कबीर पने 'झापको कदते हैं कि तन को चिरदद में फूंफ
देसेवाठा कोई नहीं है। ये ज्ञानांध लोग इस रददस्य को नहीं
जानते हैं; यदद मैं कूकि कर बराबर कद रददा हूँ । यथा--
कबीर ऐसा को नहीं इद्द तन देवे झूकि |
अंघा लोगु न लानई रहो कबीर” कूक्ति ॥*
_ चपयुक्त स्थत्त पर 'कबोर” का अथे तोढ़ मोदकर ईइवर को
श₹ कवीर अन्यावली, साखी २ एू० ६४ ।
२ वद्दी, साखी १ पृ० ६१ |
३ चद्दी ( परिशिप्ट ) साखी १७७ प० रघ२।
४ फ० अ० ( परिशिष्ट ) सासख्वी १४ पू० २५० |
(०
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