सामुद्रिक शास्त्रम् | samudrik shastrm
श्रेणी : ज्योतिष / Astrology
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.86 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास - Ganga Vishnu Shrikrishnadas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). सान्वयनाषाटीकासमेतम । (३)
अनयोः लक्षण क्रियते तत इह जनोपरतिः स्थाद ) जो इन दोनोंके लक्षण
करेजायँ तों इस लोक सबका उपकार होय ॥ ७ ॥
.. इत्थे विधिन्त्य खुवरे स्वडदि सपुद्ेण सम्यगवगम्य ।
नुल्रीउशणशाख्ं रचयाओक्रे तदादि तथा ॥ ८ ॥
अन्वयार्थो-( समुद्रेण इत्थे सुवरे स्वहृदि विविन्त्य सम्यक च अवगम्प )
ससुद्रने श्रेष्ठ अपने हृदयमें विचार करके और अच्छे भकार समझिके ( चृखी-
लक्षणशाख्रं तथा तदादि रचयांचक्रे ) मदुष्य आर ख्रीके हैं ठक्षण जिसमें.
ऐसा शाख्र और आदिगें मदुष्यके हैं लक्षण जिसमें सो रचा अर्थाद् बनाया॥ ८
तदाप नारद्लशकवरा हसा एडव्यूपण्मुखप्रसुखः
राचत क्राचत्रस ड्त्पुसुपत्राउश्षण 1 काश्तू ॥ ९ ॥
अन्वयार्था-( तदापि नारदलक्षकवराहमाण्डव्यपण्सुखमसुखेः मसज्ञाद ,
पुरुषस्नीलक्षणं किंचित् कायेव रचितशू-) तब भी नारद छुनि जानने-
वाछे और वराह मांडव्य स्वामिकार्चिक आदिकोंने असज्जसे पुरुष और
स्रीके लक्षणों करके युक्त कुछ कुछ शाख कहीं बनाया ॥ ९ ॥
तंदनन्तरपि सुषने रुपातं क््रीपुंसलसणज्ञानम् ।
ढुबाध तन्महादिति जडमतिभ खण्डतां नातम् ॥ १० ॥
अन्वयाथा-( तदनन्तरमु इह खुवने ख्रीपुंसलक्षणज्ञावं रूपातमू अति-
दुर्बोध॑ तद् महत् जडमतिहिः खण्डतां नीवमू ) ताके पीछे इस छोकमें
खी पुरुषके ठश्षणोंका ज्ञान प्रगट हुआ-तिससे वह बड़े जानके कठिन
होनेसे जडबुद्धियोंने खंडित कर दिया ॥ ३० ॥
आयाजनूपसुमन्तृप्रतानामधतताप दस्त ।
सााइकशाइाण माया गहनान तने परदे ॥ 33 ॥
अन्वयोथो-( भीमोजनूपसुमन्तमशुतीनासू अपि अगतः सामसुदिक- -
शाख्नागे विद्यन्ते ) श्रीमाचू भोज ओर सुमन्त भादि राजाओंके आगेभी
सासुद्रिक शाख थे ( मायः तानि पर गहनानि सन्ति ) परन्तु वे बहूंधा-
करिके अत्यन्त कठिन और गढ थे ॥ 33 ॥
User Reviews
rakesh jain
at 2020-12-09 10:25:35