मसान का फूल और अन्य कहानियां | Masan Ka Phool Aur Any Kahaniyan

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Book Image : मसान का फूल और अन्य कहानियां - Masan  Ka Phool Aur Any Kahaniyan

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शंकर लाल - Shankar Lal

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सच्चिदानंद राउतराय - Sachchidanand Rautaray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मसान का फूल 3- गांव में कोई उसे मुंह खोल कुछ नहीं कह पाता । जगू के अलावा टूसरा पक्का जानकार बाम्हन मालभाई नहीं है। कोई जगू के प्राप्य में कमी करने की चेष्टा करता तो जगू काम की तुलना में मेरी मांग कुछ नहीं कहकर तरह तरह के तक रखता । अपनी बहादुरी दिखाने वाली पुराने बातें कहता- मेरे जैसा है दूसरा मुरदे फूंकने वाला ? इस बात पर वह खूब गर्व करता । पिछले बरस नरसिंह मिश्र की औरत को कैसे अचानक मूसलाधार बरसते पानी में भी जला आया । आते समय सातगछा बगीचे के छोर पर एक गरदनमरोड़ मर्दल के चक्कर में पड़ गया । उसके बाद पौष की ठंडी रात में जलोदर से मरे नाथ ब्रह्मा को जलाते समय . मुरदे के पेट से मटके भर पानी निकला चिता बुझ गयी । फिर भी जगू कैसी चतुराई से इतने कठिन मुरदे को जला सका यह पुरानी कहानी है--वह ख़ुद रस ले-लेकर बताया करता है कभी कभी । मुरदे जलाने की विद्या में जगू तिवारी का अनुभव और उसकी गहरी जानकारी की बात कोई भी ग्राहक घड़ी-आध घड़ी में बात करके जान जायेगा । रोज जगू तिवारी भागवतपर में बैठकर अपने हिस्से की कथा सबको एक एक बार कह सुनाता । टप टप मेघों भरे मौसम में उसके श्रोता उसे घेरकर बैठ जाते हैं । गांजे का दम लगाकर पहले जगू गला खंखारता है । श्रोता समझ जाते कि अब कहानी शुरु होगी । पक बार कोई अच्छी सी लाश जलाकर लौटते समय की वात है-मुक्ताझर के पास घने आम की डाल पर बैठी कोई भूतनी अंतड़ी जलाकर अपने वच्चे को सेंक रही थी.... । किसी निपुण चित्रकार की तरह वर्णन कर रहा था जगू । श्रोता सहमे-सिकुड़े दीवार के सहारे बैठे हुए सुनते । इसी तरह उस छोटे से गांव में जगू तिवारी का जीवन कटता । असौज की रात सांझ से कुछ मेघ घिर आये हैं । जगू तिवारी का सिर दुख रहा था शायद । दोनों कानों के पास माथे पर थोड़ा सा कली-चूना लेपे हुए सिर को कनटोप से ठांपकर बाहर चबूतरे पर बैठा हरिवंश सुन रहा था। गांव में रोना-पीटना सुनायी दिया । पड़ोस की बस्ती वाली दुकान से पान-जर्दा लिये कोई लौट रहा था। उसी ने खबर दी कि जटिया मौसी के यहां उसकी बहू मर गयी है। देखते देखते सारे गांव में हलचल मच गयी । चलो अब दो पैसे की आमदनी होगी । जगू तिवारी को कुछ राहत मित्ती। कई लोग कई बातें कह गये हैं आकर । बस्ती की औरतें दस बातें फुसफसाने लगीं । किसी ने कहा- पाप का पेट था । किसी और ने कहा- पेट खाली करने को कोई दवा-दारू खायी थी। जहर फैल गया सारे शरीर में । जगू तिवारी गुमसुम सब सुनता रहा । मुंह मोड़ लिया । जात जाने के भय से इतना बड़ा रोजगार.... सारी आशा टूट गयी।




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