अद्भुत रहस्य व सचित्र विचित्र वारांगना | Adbhut Rahasya Va Sachitra Vichitra Varangana

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Adbhut Rahasya Va Sachitra Vichitra Varangana by पंडित काशीनाथ - Pandit Kashinath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा बयान! - ण गए क्सिकलणययतएयतुशशफटलसससवटटटटटटटपप्टटपटटेनयडयसस्टय 2.25 उस शहूब्स से, कि जिस ने अव्वछ ही अव्वल मुझे सरफ़राज़ , किया था, इस बात के पांच सौ रुपये लिए गये थे। और चंकि वह दॉलतवाला था इसलिए इतनी गहरी रक्रम देकर भी अपना नाम नामवरी के वास्ते जाहिर करना नहीं चाहता था | अब इस से हम फ़ायदा था या नुकसान, सो मेरी समझ में कहने की जरूरत नहीं, क्योंकि आप खुद सोच सकते हैं, कि ऐसी बातों का होना हम लोग अपनी खुश क्रिस्मती का बाइस सझमती हैं | आज मुझे सरफ़्राज़ हुए, या यों कहिये कि मिस्टर रोवन- लाछ की नौकर इए, आठवां रोज़ था | बह बराबर नौंबजे रात को मेरे मकान पर आता था और वारह एक, कभी कमी तीन चार बजे तक मेरे मकान पर ठहरता था | यह बतीरा उसका क्यों था? वह मुझे अपने मकान पर क्यों नहीं बुढाता था इन सच का .जवाबर यही होगा कि अपने बाछिद के डर से वह ऐसा करता था । रात के नौ बजे थे, जब मैं अपने नये चाहनेवाले की बाट जोहने # ठगी | लॉडी ने सब सामान कमरें में पहढ़े से 'तथ्यार कर रकक्‍्खा था, इसलिए मैं एक कुरसी पर वैठकर ग्रज़लों की कित्तान ठेके गुनगुनाने ठगी । साढ़े नौ बज गये, छेकिन अभी तक वह न जाया, इस से मुझे ताज्जुब हुआ । क्योंकि और दिन वह ठीक नौ बजे आ.- जाया करता था । इस वक्त में में किताब पढ़ती पढ़ती भी उकता गई, इसछिए उस को अछग रख कर पढंग पर जा छेटी | ठीक दस बजे, ,जब कि सुझे कुछ झपकी सी आने छगी थी, * रा देखने ।




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