मन की अपार शक्ति | Man Ki Apar Shakti

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Man Ki Apar Shakti by केदारनाथ गुप्त - Kedarnath Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मन की रचनात्मक शक्ति [है रने का श्रर्य है नई नई बातें उत्पन्न करना । कइने का तात्र्य्य॑ दहहै कि जीवन मर इम नई-नई बाते उत्पन्न करते रदे. श्रौर हमें लिम तक न हुश्रा। इमारी धारणा थी कि नवीम-नवीन गैलिक बाते पैदा करने की शक्ति, जो एक ईश्वरीय देन है, चढी (लम श्रौर श्वसाधारण वस्तु दे श्र सम्मव है किसी समय हटिन परिधम के बाद व दमें उसी तरह मिल जाय, जैसे कोई स्व बाइर से मिल जाया करती है । कितनी विचित्र धीर श्राइचर्यज्नक बात है कि डिस शक्ति की इस इतने शमय से स्लोज कर रे थे वदद हर रुमय इमारे भीतर ही मौजूद थी । हमें कया मालूम कि वह शक्ति मन भी एसाप्रतां से में मिल सकती थी श्वौर शके उचित प्रयोग से इमारां कलूपाण हो सकता था 1 बह नदी के नल की तरइ उधर हो नष्ट अप्ट शो रदी थी श्र इधर हमारा जीवन यों ही हिना शोचे-समके थीत शहद था दौर इमारे दिन बेकार जा रहे थे 1 इसके श्रतिरिक्त मेरा यह विश्वास हे कि इमारी यह शक्ति सदुपयोग में न श्राकर श्नजाने दुख पैदा करने में भी लगी । ' हमने रमक रस्खा है कि दुख, सुख, शनि, लाम धौर बोमारी चित्त इमारे माग्य में पहिले से ही निर्दिष्ट हें, जिनका सोगना इमारे लिए श्निवार्यं हे । अपने इसी दिश्वास फे बारण इसने इन बातों पर धपने सन को लगाया श्ौर दुख, सुख झयादि पैदा




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