हिंदी भाषा और लिपि | Hindi Bhasha Or Lipi

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Hindi Bhasha Or Lipi by धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आर्यीचर्त्ती अथवा भारदीय आर्यसापास्ं का इचिह्ास... १६. डोंगे, तो इनकी भाषा में भी छुछ भेद हो गया होगा । पहली वार में चने वाले आये कदाचितू काबुल की घाटी के मार्ग से आए थे; किंतु दसरी बार में आते वाले आये किस साय से आए थे, इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा.सकता । संभावना ऐसी है कि ये लोग काबुल की घाटी के मागे से नहीं आए; बल्कि गिलगिव और चितराल होते हुए सीधे दक्षिण की ओर उतरे थे । पंजाब सें उतरने पर इन नवागत आर्यों को अपने पुराने भाइयों से सासना करना पड़ा होगा, जो इतने दिनों तक इनसे लग रहने के कारण कुछ मिन्न-सापाभाषी हो गए होंगे । ये नचागत आये कदा- चित्त पू्वे पंजाब में सरस्वती नदी के निकट बस गए । इंसके चारों ओर पूर्वोगत आर्य वसे हुए थे । धीरे-धीरे ये नंबारत आये फैले होंगे। संस्कृत साहित्य सें एक 'सध्यदेश” शब्द झाता है। इसका व्यवहार आरंभ सें केवल छुर, पंचाल और उसके उत्तर के दिसालय प्रदेश के लिए हुआ है । चाद को इस शब्द से अभिप्रेठ भसिभाग की सीमा में विकास हुआ दे । संस्कृत अंथों ही के आधार पर हिसालय चर चिंध्य वीच तथा सरस्वती नदी के लुप्त होने के स्थान से प्रयाग तक का भुमिभाग “सथ्यदेश' कहलाने लगा था। इस सूसिभाग सें वसनेवाले लोग उत्तस माने गए हें छौर उनकी भाषा थी प्रामाशिक मानी गई श्रौर पंचालों का युद्ध भी इस मेद की श्रोर संकेत करता है | लैठन साइब से यद सिद्ध वरने का यह्न किया है कि पं चाल लोग कुसश्रों की श्रपेक्षा पहले से भारत में चते हुए थे । रामायण से भी इस भेद्-भाव की कल्पना की पुष्टि दोतो है । मददाराज दशरथ सध्य-देश के पूर्व में कोशल जनपद के राजा थे, हिंद उन्दोंने विवाद मध्य-देश के पश्चिम केकय जनपद में किया था । इच्चाकु लोगों का सूछ-स्थान सतलन के निकट इत्तुमति सदी के तट पर था। ये सब छनुभान॑ तथा करपनाएँ: पश्चिंगी विद्वानों की खोज के फलस्वरूप हैं। १ इूत शब्द के विस्तृत विवेचन के लिए ना० प्र० प०, भा० है, उँ० १ में लेखरू का 'सव्पदेश का दिकास शीर्षक लेख देखिए, | ः




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