पद संग्रह भाग २ | Pad Sangrah Bhaag 2
Book Author :
Book Language
मराठी | Marathi
Book Size :
25 MB
Total Pages :
472
Genre :
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(Click to expand)योगविद्या, गै, . «सि केली.
ल चि. 3७ . करिती कोकिळा, पज |
म्ह्णे - शगी झालासे स्थीर ।
नित ..॥< समाधि सवेग सार ॥ उर्ठिंन ॥ ९६ ॥'
पद १६ वै
सब घट देखो माणिक मौला । कैसे न कटू मै काला धवला ।
पंचरंगसे न्यारा होई । लेना एक और देना दो ॥ ध्बपद. ॥
निगुण ब्रह्म भुवनसे न्यारा । पोथी पुस्तक भये अपारा ।
कोरा कागद पढकर जाय । लेना एक और० ॥ १ ॥
अल्लुख पुरुष मै देखा दृष्टि | कर भाउन समार मुध |
छाटामे कळु न होय । लेना एक और० ॥ २॥
खलखदिया त्रिनिका । तिरते तिरते यम न थका ।
इस पार पावे न कोयी । लेना एक और० ॥ ३:॥
नि्गुन दाता कर्ता हर्ता । सब ज़ुग बनमो आपहिता ।
सदा सर्वंदां अचल होई । लेना एक और०' ॥ ४ ॥
निग्रुन सागर आथक पसारा । वाको तरग सकळ संसारा ।
उद्धिज प्रलय वातो होय | लेना एक और० ॥ ९ ॥
सप्तहि सागरशायी कता । धरती जो कागद लिखो पंडिता ।
एक अक्षर पडेन कोय । लेना एक और० ॥ ६ ॥
कहे ज्ञानदेव मनमो घरियो । सप्तहि सागर अगो धरियो ।
पिंडमे आवे जावे कोय । लेना एक और० ॥ ७ ॥
३. इयामसुंदरकृत पदं
पद १७ वै.
मन माझें र[मपदीं जडलें | ध्रुवपद. ॥|
माशी मधासिं ढुब्धुनि राहे । या न्याये गमलें ॥ मन० ॥ १ |
कमठळिणीशीं श्रमर जैसे । सुगंधा भुलले ॥ मन० ॥ २ ॥
इयामसुंदर जिवलग म्हणे । रामपदीं भन रमले ॥ मन० ॥ ३ ॥
१. शुभ्र, पांढरा. २. निराळा, अलग.
२ अ० प० भाू० दु
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