संगीत अमरता के दो राही | Sangit Amarta Ke Do Rahi

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Book Image : संगीत अमरता के दो राही  - Sangit Amarta Ke Do Rahi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११. जब से श्रेद्धय मुनिश्री जी ने मुद्रित असुद्रित साहित्य का. सम्पादन-भार मुझे सौंपा तब से मैं अनुभव करता हूं कि संत- साहित्य तो स्वयमेव सम्पादित ही होता है।जिस में श्री चत्दनमुनि जी स्वयं एक अच्छे मंजे सघे तपे हुए कविरत्न हैं । जिनको रचनाओं से स्वयं सम्पांदक को बहुत कुछ जानने-सीखने को मिलता है । फिर उसका सम्पादन कंसा ? मैं सोचता हूं कि यहू॒तो मुनि श्री का स्नेहाग्रह एवं गुणिषु प्रमोद की वृत्ति ही है कि वे दूसरे के गुणों का कला का न केवल सम्मान ही करते हैं किन्तु उसे बढ़ा- चढ़ा कर भी बताते हैं । मेरे लघु प्रयासों द्वारा मुनि-श्री. जी के साहित्य को नवरूप देने में जो कुछ सहयोग हुआ है उसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूं । मेरा विश्वास है मुनि श्री के साहित्य में व्याप्त विस्तरण छोली भी नीरसता के द्वार नहीं खट खटाती । प्रवाह का पूर्णतथा निर्वाह ही तो सरसता का द्योतक है । .. लेखक सम्पादक सुद्रक जगन्मात्र के क्षमा योग्य ही होते हैं तब मुझे अपवाद समझने की भूल मत कर जाना । बस पाठकों से इसी नम्र निवेदन. के साथ -- -ेसीचन्द पुलिया द्वारा श्री रेखचन्द जी वेद दॉँती बाजार बीकानेर राजस्थान




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