सुभाषितरत्नसंदोह | Subhashit Ratn Sandheah 1977 Ac 6788

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ 1 अमितगतिने भी १९ वें परिच्छेदमे पूजा विधिका और १५ वें ध्यानका वर्णन विस्तारसे किया है। कहीं- कहीं तो विषयके साथ शब्द साम्य भी है यथा-- देवतातिथिपित्रथ॑. मन्त्रोषधिभयाय... वा। न हिस्यात्‌ प्राणिन' सर्वानहिसा नाम तदुब्रतमु ॥॥३२०॥ --उपा० देवतातिथि मन्त्रौषघपित्रादिनिसित्ततोर्थप सम्पन्ना । हिसा धत्ते नरके कि पुनरिहू नान्यथा विहिता ॥ --श्रा० ६-२९, अत: अमितगतिके सन्मुख उपासकाध्ययन अवध्य रहा है ऐसा प्रतीत होता है । रे. अमितगति और आज्ञाघर--अमितगतिके श्रावकाचार आदिने आशाधरके धर्मामृत ग्रन्थके अनगार और सागार दोनों भागोको अत्यधिक प्रभावित किया है। दोनोमे श्रावकाचार और पंचसंत्रहके उद्धरणोंकी बहुतायंत है तथा आशाधरने स्वय उनका नामोल्लेख भी किया है यथा--अनगारधर्मामृतकी टीका (पृ० ६०५) मे लिखा है-- एतदेव चामित्तगतिरप्यन्वाख्यात्‌- कथिता द्वादशावर्ता वपुवंचन चेतसास । स्तव सामाधिकाद्यन्तपरावतंनलक्षणा: ८1६५ ४. अमितगति और पद्मनन्दि--आचाय॑ पद्मनन्दीकी पर्शाविशतिकाके अनेक पथ्य अमितगतिसे प्रभावित है, पश्चविशतिकाका एक पद्य इस प्रकार है-- कृतमज़िपीडन प्रमोदित कारित यत्र तन्मया । प्रमादतो दपंत एतदाश्रय तदस्तु मिथ्या जिन दुष्क्त मम ॥ अमितगतिकी भावना द्वारत्रिवतिकाके निम्न पद्यांश इस प्रकार है-- एकेन्द्रियाद्या यदि देव देहिन: प्रमादत: संचरता इतस्तत:' है श्र मनो वच'कायकषायनिर्मितसु । 2 श्र रद तदस्तु मिथ्या मम दुष्कृतं प्रभो । अन्य भी अनेक समानताएँ हैं । ५. अमितगति और प्रभाचन्द्--आचायें प्रभाचन्द्रने अपना प्रमेय कमल मातंण्ड मुजके उत्तराधिकारो « राजा भोजके राज्यकालमे बनाया है । उन्होंने पुज्यपादकी तत्त्वाथ॑वृत्तिके विषम पदोंपर भी एक टिप्पण लिखा है जो भारतीय ज्ञानपीठसे प्रकाशित सर्वाथंसिद्धिके द्वितीय सस्करणके साथ प्रकाशित हो चुका है। उसके प्रारम्भमे अमितगतिके पंचसग्रहका निम्न पद्य उद्घृत है-- वर्ग शक्तिसमूहो5्णोरणूना वर्गणोदिता । वर्गणाना समूहस्तु स्पघ॑ंकं स्पघ॑कापहै: ॥। पे. अमितगति और हेमचन्द--आचाय हेमचन्द्रका स्वगंवास सम्बत्‌ १२२९ में हुआ था। उन्होंने कुमारपालके अनुरोधसे योगशास्त्र रचा था । इसमे जिस प्रकार शुभचन्द्रके ज्ञानार्णवका अत्यधिक अनुकरण है उस प्रकार अमितगतिका अनुकरण तो नहीं है। फिर भी उनके सु० र० सं० तथा श्रावकाचारका प्रभाव




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