देश की आन पर | Desh Ki Aan Par

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Desh Ki Aan Par by गणेश पांडेय - Ganesh Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ | असम्भव हैं । उधर युडोसिया सोचती, दुनिया की दौलत से क्या काम ? अपना सवेस्व देकर भी, जोनास के प्रेम का दातांश भी प्राप्त कर सके तो वह कृता्थ हो जाय । दोनों ने दोनों को भ्रवस्था को भ्रच्छो तरह समभ लिया था, इसी से एक दूसर के प्रति उनका प्रेम चट्टान से रुकों नदी की भाँति, भीतर-ही-भीतर प्रतिहत होकर उछला पड़ता था । इसी तरह कई वर्ष बीत गये । इसी बीच जोनास शाही फौज में भरती हो गया । इधर युडोसिया ने, सोलहवाँ वष॑ समाप्त करके सत्रहुवें में पदापंण किया । संसार में जोनास के लिए एकमात्र बस्खन थी उसकी बुढ़िया माँ । माँ को देखने के लिए महीने में एक दिन की छुट्टी लेकर वह घर श्राता । उस दिन की प्रतीक्षा में, कुछ दिन पहले ही से, यूडोसिया घंटा-मिनट गिन-गिन कर समय बिताती | बगीचे के निकट, खड़े-खड़े यूडोसिया के मुँह से बातें सुनते-सुनते जोनास के शरीर में, रोमांच हो श्राता-उसके मुँह की आर देखते-देखते वह ॒उन्मत्त हो उठती । बिंदा लेने के समय एक . महीने की भावी विरह-व्यथा से दोनों के नेत्र झाँसुग्रों से भर जाते । र) ..... इस बार छुट्टी के बाद बहुत दिन हुए, जोनास राजधानी . _ को लौटा गया है 1 यूडोसिया हमेशा की तरह झ्राज भी बगीचे में. टहलने के लिए श्रायी है, और उस चतब्ुरे पर चढ़कर खड़ी है, श्रौर जोनास की छोटी भोपड़ी की श्रोर देखकर सोच रही है, कब इस छोटी भोपड़ी के दिन फिरंगे ! इतने में पीछे से किसी ने चुपके से पुकारा “यूडोसिया !” झ्रावाज सुनकर वह _. चौंक उठी, पीछे फिर कर देखा पसीने से तर जोनास हाथ . में एक छोटी-सी पोटली लिए खड़ा है। जोनास बोला--




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