मानस - पियूष बालकाण्ड भाग -३ | Manas-piyush Balkand Bhag 3
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
103.46 MB
कुल पष्ठ :
634
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महात्मा श्री अंजनीनन्दन शरणजी -Mahatma Sri Anjaninandan Sharanji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२६ युरुषमें मस्तिष्क श्र ख्रीमें हदयका शासन श्रघान ं रदे४ ७-८ रेप ०-३८ १ पुरुषकी परीक्षा चार श्रकारसे की जाती है. २७४ १-२ पुरुषसिंह और सिंहका कार्य ओागे अरण्यकांडके पू्च नहीं है र१२ १ पुरुषरसिंह का रूपक दो० २०८ १५४ पुष्पवृष्टि आनन्द सूचक देवोंकी सेवा. २४८ ५ ४ ८३ . .. झुभवकुन है २४६ ५८ ४७० | पूजाकी वस्तुको लिये हुये प्रशाम न करे २३७१ ४० ६-७ | वि न पूजा पूजना दो० देर एजा सान्यता बड़ाई ३०६ ४ प्रथ्वीके घारण करनेवाले छुः हैं इपण ३ अतिज्ञा तोढ़नेसे सुझतका नाश रणर ५ ण१ | प्रधानका एजन आदि या अन्तमें होता है ३५२ ८ प्रयाम साशंग अखशस्त्र उतारकर करना चाहिए२ ६९२ प्रणाम बार-बार क़तज्ञताका सूचक २११ छंद १८ ३-१ ८४ केक ते कान उनके से भा के क..ैना अ-0़ेस्ी कै जनक अं कक का वादा अ- 5 शिष्ट पुरुष बड़ोंको प्रशाम करके बोलते हैं दो० २१५ २१७ । खंमय पिताका नाम भी सेनेकी रीति तथा झन्य कारण | २६९ २ ४ | प्रबान रपाद ७ | प्रभु दो २३० दो० दे ०८८ दे 8५० ं प्रमाण चार हैं दो० ३४१ ७ | अयोग तांत्रिक छुः श्रकारके रर8 ५ देरेप | प्राकृत इश्य चित्रण तुलसीके पढें केवल श्ुप नाटकीय पढें नहीं हैं प्रात काल प्रात क्रिया प्रियके सम्बस्घकी चस्तुसे प्रियके सिन्नचका सुख २३५ ५ | प्रीतिकी प्रशंसा उसकी पविश्नतासे है. दो० २२३ ३२२५ प्रीति अपुनीत भी होती है प्रीलियोग म्रेमसे ज्ञानकी शोभा प्रेमडगरिया की मंजिलें प्रेसकी संक्रान्ति दशा फल और उनकी क्रियायें बंदी चातक ह ही जे दर ३३८ दे परे १ १८७ २३ छुंद इ२४ छंद ४ दो० ३२२५ . रैधि७ ण अलग कहकर जे के श्र िलासल | बढ़भागी अति बढ़भागी । बन बागकी शोगा पक्षियोंसे २९७ ह-दे दे ०० र५न ५ | १३० श | प्राथनाकी रीति मनोरथपूत्तिके लिये २३९ ३-ध देद० बालकका वध भारी पाप है २५७ दे २२८-ररे& | १३१ प्न९ २४ | १8४ ६ पे र११ छुन्द १७७-१७८ सातों कॉंडॉ्में चरणानुरागियोंको कहा हे बंढ़ी सुत सागध ह बंगमेल दो० ३०५ बचन रचना रदण ३ २९३ ६ बतकढ्दी दो० २३१ देधेश दे० वन फूलेफले वनमें खगसूगका निवास ... २१० ११ १७२-१७३ २२७ ५-६ डे०० के साथ चातक कोकिल कीर चकोर और मोरका वणंन सदेतुक २२७ ५-द ३००-३०१ वर वरका पिता और बराती क्या पाकर प्रसन्न छोते हैं ररप १ वर दुलहिनके परस्पर झवलोकनकी शास्त्राज्ञा ३२३ छुन्द वरकी योग्यता तीन प्रकारसे २२२ १ २६४ बर वाणी... र० ३ डे ० धर बेष जिसे कोई भाँप न सके दे१८ ७ बर भामिनि देजण १ नल चिनय शीला आदिका क्रम ३११ छुर्द नलि जाना देर छुन्द वश करना तीन प्रकारसे रण७ १ जद्टे७ वाक्यमें तत्वचचां के चार पदाथ पथक्य साध्य हेतु और इ्टान्त र३४ स् बाज बाज और लवाका इृष्टान्त रेप ३ | वाणी वाक्य के दो गुण सत्य और प्रिय... ३२० ७ वाणीके दोष वाक्दोष 9 हैं शेप २ चाव्सल्यका मुख्य स्थान सुख २०७ न १३8 में बल तेज झादिका भाव स्वप्नमें थी नहीं श्राने पाता त दो० रणण 9 दी० ३०३ २७२ ५ २२३ ७-८ २७१ २१७ द एे२ बारातमें १९ कार्यके लिये १२ शकुन बिचारी बिदा मॉँगकर जाना शिष्टाचार है विदेद १३५ ८ दो० २१५ ३५ २ ३४० ७ शव रेप ७ 33. शब्दका प्रयोग विवाद अकरण में रे९१ ७ विदेदकुमारी र३े० पं देर निधि दर्द ८
User Reviews
No Reviews | Add Yours...