मानस - पियूष बालकाण्ड भाग -३ | Manas-piyush Balkand Bhag 3

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Manas-piyush Balkand Bhag 3 by महात्मा श्री अंजनीनन्दन शरणजी -Mahatma Sri Anjaninandan Sharanji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२६ युरुषमें मस्तिष्क श्र ख्रीमें हदयका शासन श्रघान ं रदे४ ७-८ रेप ०-३८ १ पुरुषकी परीक्षा चार श्रकारसे की जाती है. २७४ १-२ पुरुषसिंह और सिंहका कार्य ओागे अरण्यकांडके पू्च नहीं है र१२ १ पुरुषरसिंह का रूपक दो० २०८ १५४ पुष्पवृष्टि आनन्द सूचक देवोंकी सेवा. २४८ ५ ४ ८३ . .. झुभवकुन है २४६ ५८ ४७० | पूजाकी वस्तुको लिये हुये प्रशाम न करे २३७१ ४० ६-७ | वि न पूजा पूजना दो० देर एजा सान्यता बड़ाई ३०६ ४ प्रथ्वीके घारण करनेवाले छुः हैं इपण ३ अतिज्ञा तोढ़नेसे सुझतका नाश रणर ५ ण१ | प्रधानका एजन आदि या अन्तमें होता है ३५२ ८ प्रयाम साशंग अखशस्त्र उतारकर करना चाहिए२ ६९२ प्रणाम बार-बार क़तज्ञताका सूचक २११ छंद १८ ३-१ ८४ केक ते कान उनके से भा के क..ैना अ-0़ेस्‍ी कै जनक अं कक का वादा अ- 5 शिष्ट पुरुष बड़ोंको प्रशाम करके बोलते हैं दो० २१५ २१७ । खंमय पिताका नाम भी सेनेकी रीति तथा झन्य कारण | २६९ २ ४ | प्रबान रपाद ७ | प्रभु दो २३० दो० दे ०८८ दे 8५० ं प्रमाण चार हैं दो० ३४१ ७ | अयोग तांत्रिक छुः श्रकारके रर8 ५ देरेप | प्राकृत इश्य चित्रण तुलसीके पढें केवल श्ुप नाटकीय पढें नहीं हैं प्रात काल प्रात क्रिया प्रियके सम्बस्घकी चस्तुसे प्रियके सिन्नचका सुख २३५ ५ | प्रीतिकी प्रशंसा उसकी पविश्नतासे है. दो० २२३ ३२२५ प्रीति अपुनीत भी होती है प्रीलियोग म्रेमसे ज्ञानकी शोभा प्रेमडगरिया की मंजिलें प्रेसकी संक्रान्ति दशा फल और उनकी क्रियायें बंदी चातक ह ही जे दर ३३८ दे परे १ १८७ २३ छुंद इ२४ छंद ४ दो० ३२२५ . रैधि७ ण अलग कहकर जे के श्र िलासल | बढ़भागी अति बढ़भागी । बन बागकी शोगा पक्षियोंसे २९७ ह-दे दे ०० र५न ५ | १३० श | प्राथनाकी रीति मनोरथपूत्तिके लिये २३९ ३-ध देद० बालकका वध भारी पाप है २५७ दे २२८-ररे& | १३१ प्न९ २४ | १8४ ६ पे र११ छुन्द १७७-१७८ सातों कॉंडॉ्में चरणानुरागियोंको कहा हे बंढ़ी सुत सागध ह बंगमेल दो० ३०५ बचन रचना रदण ३ २९३ ६ बतकढ्दी दो० २३१ देधेश दे० वन फूलेफले वनमें खगसूगका निवास ... २१० ११ १७२-१७३ २२७ ५-६ डे०० के साथ चातक कोकिल कीर चकोर और मोरका वणंन सदेतुक २२७ ५-द ३००-३०१ वर वरका पिता और बराती क्या पाकर प्रसन्न छोते हैं ररप १ वर दुलहिनके परस्पर झवलोकनकी शास्त्राज्ञा ३२३ छुन्द वरकी योग्यता तीन प्रकारसे २२२ १ २६४ बर वाणी... र० ३ डे ० धर बेष जिसे कोई भाँप न सके दे१८ ७ बर भामिनि देजण १ नल चिनय शीला आदिका क्रम ३११ छुर्द नलि जाना देर छुन्द वश करना तीन प्रकारसे रण७ १ जद्टे७ वाक्यमें तत्वचचां के चार पदाथ पथक्य साध्य हेतु और इ्टान्त र३४ स्‍ बाज बाज और लवाका इृष्टान्त रेप ३ | वाणी वाक्य के दो गुण सत्य और प्रिय... ३२० ७ वाणीके दोष वाक्दोष 9 हैं शेप २ चाव्सल्यका मुख्य स्थान सुख २०७ न १३8 में बल तेज झादिका भाव स्वप्नमें थी नहीं श्राने पाता त दो० रणण 9 दी० ३०३ २७२ ५ २२३ ७-८ २७१ २१७ द एे२ बारातमें १९ कार्यके लिये १२ शकुन बिचारी बिदा मॉँगकर जाना शिष्टाचार है विदेद १३५ ८ दो० २१५ ३५ २ ३४० ७ शव रेप ७ 33. शब्दका प्रयोग विवाद अकरण में रे९१ ७ विदेदकुमारी र३े० पं देर निधि दर्द ८




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