बरवै रामायण (नवीन पाठ ) | Baravai Ramayan (Navin Paath)

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गोस्वामी तुलसीदास - Gosvami Tulaseedas

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डॉ. राजकुमार वर्मा - Dr. Rajkumar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका चरवे रामायण सहाकवि तुलसीदास के प्रमुख ग्रंथों में है। नागरी अचारिणी सभा काली द्वारा संवत्‌ १९८० में प्रकानित तुलसी-प्रंथावली के दूसरे भाग में तीसरा ग्रंथ वे रामायण है। डॉ० माताप्रसाद गुप्त भी वरव को महाकवि तुलसी का एक संग्रह ग्रंथ ही मानते मापा और नली की दृष्टि से भी वरवें रामायण महाकवि तुलसीदास का ग्रंथ नात होता है किन्तु जिस वरवे रामायण को अब तक. तुलसी रचित होने की मान्यता प्राप्त है वह संभवत वास्तविक वरवेँ रामायण नहीं है। या तो चह वरवै नाम से एक स्वतंत्र ग्रंथ है या वास्तविक वरवेँ रामायण का अत्यंत भव्यवस्थित व्यत्ययित लवु-पाठ है जिसमें तुलसी के अन्य ग्रंथों में कही गई राम-कथा का विकृतत कंकाल-मात्र है। न तो उसका प्रारम्भिक भाग ही कथा-रूप से भारम्भ होता है और न अंत में ही कथा का पर्यवसान है। गालंकारिक रूप से विविध कांड स्थितियों के विम्व-मात्र है और उत्तर -कॉड तो कथा-रहित भक्ति का उपदेग ही है । खोज-विवरणों में वरवें रामायण की अनेक हस्तलिखित प्रतियों का उल्लेख हुआ है। कुछ अन्य प्रतियाँ विविध स्थानों से भी प्राप्त हुई है इन प्रतियों के पाठ नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित वरवे रामायण के पाठ से भिन्न हैँं। इन भिन्न पाठों में जहां राम-कथा विस्तारपूर्वक वर्णित न्की गई है वहां महाकवि तुलसी की कथा-विपग्रक प्रवृत्ति काव्य-सुपमा और भाषा-बली भी लथित हुई है। इनमें से अनेक प्रतियाँ प्राचीन भी हैं। अत इन प्रतियों के द्वारा वर रामायण का एक अत्यन्त व्यवस्थित रूप प्राप्त ड्ोता हैं जो वरवै समायण के मुद्रित पाठ से बहुत भिन्न है। ल् न नकल हे हि न था ् ढ भ् क जे ्ज हि १. तुलसीदास (डॉ. माताय्रसाद गुप्त) पृ ४ र्ेफ।




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