विवाह - समस्या अर्थात् स्त्री - जीवन | Vivah - Samasya Arthat Stree Jivan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्श्यु विवाह और विवाइ-विधि सभी घान बाइस पसेरी के अनुसार इसकी उपेक्षा कर हम झथे का न न करे | हमारी विवाह-विधि से ऐसी कोई वात होनी चाहिए जिस से लोग यद्द समभ सके कि विवाह को किन्दीं दो पंक्तियों का साधारण सम्बन्ध-मात्र समकना भूल है । विवाहर्चवधान पर गंभीर विचार करने से मुझे यह प्रतीति हुई है कि झगर पति- पत्नी इंश्वर को अर्थात परम-तत्व को समान रूप से मानने वाले सहों तो वह विवाह कल्याण-कारी नहीं होता यद्टी नहीं बल्कि उसका स्थायी होना भी अशक्य है । झतएव विवाह के बाद शीघ्र ही पति-पत्नी को समान रूप से एक सी विधि-द्वारा इंश्वर की उपासना एजा और प्राथना करनी चाहिए । गर विवाह की प्रतिज्ञाओ में चतुर्विधि-पुरुषार्थ का श्रर्थात्‌ जीवन के धादश की एक-रूपता का सकल्प भी जोड़ टिया जाय सो बड़ा अच्छा दो । जिस तरह गंगा-यसुवा के सगस में सरस्वती की शुप् धारा भी मिली हुई है उसी तरह विवाद में इश्वर को यूथ कर त्रिवेणी बना देने के चाद विवाह और समाज का सम्बन्ध _ स्पष्ट होजाना चाहिए । विवाह-विधि की स्थापना में इस भाव को स्थान होना चाहिए कि विवाह एक समाजिक सम्बन्ध है अथवा विचाह-विधान से ही समोज्ञ की घुनियाद सन्निदिति है । विवाह-दिधि द्वारा वर-कन्या के मस्निप्क सें थे संस्कार इढ़ हो जाने चाहिए कि घ्रक्ष-सेवा जलाशय-ठुद्धि गोरक्षा




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