आदर्श बालक | Adarsh Balak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : आदर्श बालक  - Adarsh Balak

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

Add Infomation AboutAcharya Chatursen Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्श दौर बादल क्रोध से थरथर काँपले हुए पालकी के सुनहरी काम के पढ़ें की ओर झम्निमय नेत्रों से देखते हुए कहा । के पर्दा हिला श्ौर चादल ने सुँड निकाल कर कहा-- काका जी सावधान / कौन तुम हो वादुल जी हाँ और सातसौ डोलियों मे जुकाऊ बीर भरे है दम सुन्नतान से निवट लेगे । वार गोरा काका घोड़ लिए खडे हैं शाप घोड़े पर चढ़ किले मे जा पहुँचे । और फिर सेना लेकर सुल्तान की सेना पर टूट पढे त 1 तक हम निवट लेगे। लीजिए तलवार ? के शाबाश बेटे दम झाज दूगावाजी का ... ८८८ प्युप ...... ज्यादा चाते न कीजिए । खीसे के पीछे घोड़ा खडा हैं ाप जाइये। हम शत्रुओं को रोकते है. । बादल पालकी से निकल कर खड़ा हुआ सकेत होते ही हजारों राजपूत हर-हर करके तलवार सँतकर निकल पड़े। रह-मे-भद् पड़ गया | छावनी में उथल-पुथल मच गई | जो जहाँ था चहीं काट डाला गया । तैयारी का अवसर ही न था मारो-मारो की आवाज ही सुनाई पढ़ती थी घायलों की चीत्कार मरते हुआओं की कराइने की छावाज और राजपूतों की हुर-दृर महादेव तथा पठानों की अल्लाहदो-अझक्रचर की तुमुल-ध्वनि हो रही थी सरड मुर्ड कट-कटकर गिर रहे थे । राग्गा भीमसिंद तीर की भॉति क्लि वी शोर जा रहे थे किले पर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now