काश्मीर पर हमला | Kashmir Par Hamala

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Kashmir Par Hamala by कृष्णा मेहता - Krishna Mehata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तूफान आगरयां हुए क्यो हो वह वोला मेरा बारह वर्ष का छंडका हस्पतील में था और वह अब जल रहा है। सुना है कि जितने मरीज वहा थें वे सबके सब उसकी साथ जल रहे हैं। न जाने मेरा बच्चा कहा होगा ? यह कहते हुए ममता भरा हृदय लेकर वह हस्पताल की ओर दौड़ा चला गया । वाद से पता चला कि उसकी लाया हस्पताल के करीब पडी देखी गई थी और उसकी गोद में उसका भुलसा हुआ सुर्दा बच्चा था । / हम लगभग ढाई घटे वही पड़े रहे। सर्दी के कारण बच्चो का रग उट गया मानो उनमे खून ही नहीं था। इतने में हमे ढूढता हुआ ओम वहा आया। वह रो रहा था। मेने एकदम उससे पूछा ओम्‌ तुम कहा ये रो क्यो रहे हो ? वच्चे उसे रोता देखकर हसने छगे वाह ओम तुम कितने डरपोक हो । देखो हम नही डरते । तुम तो कहते थे कि तुम किसी से नहीं डरते। अब यह क्या हो गया है जो कायर बनकर रो रहे हो वह कुछ नहीं वोला | मैने उससे फिर पूछा बात क्या है वताओ तो तुम इतना रो क्यो रहे हो। वह ज़रा रुककर बोला जव आप यहा आई तो मे कोठी मे ही था । साठ कवाइली वहा ब्गये और सब जेवरात और कीमती कपड़े निकाल कर ले गये । और साहव के कपडे भी अलमारी से निकाल कर पहन रहे थे । मेने उसकी वात काटते हुए कहा बस इसी पर तुम इतना रो रहे हो । भाई कपड़े और जेवर हमने ही तो बनवाये थे। जिन्दा रहे तो फिर वनवा छेगे । पर हा एक वात सुनो । अगर तुम कोठी में जाकर साह्व का गर्म सूट ला सको तो अच्छा होगा । वे प्रात काल ठडे कपडो मे ही गये हू उन्हें सर्दी लग रही होगी । यह सुनते ही उसने एक आह भरी और जाने के छिए उठा । पर कुछ दर चलकर फिर लौट आया कहने लगा मं नहीं जा सकता । जब में यहा आ रहा था तो कोठी से से किसी के कराहने की-सी आवाज सुनी थी । इतना कहते-कहते वह सहसा रुक गया। तब न जाने कया सोचकर मेने भी उससे कहा अच्छा रहने दो इतने मे हमारी कोठी जलती हुई दिखाई पडी । हमारे साथ के चपरासी ने कहा देखिये जापका घर जल रहा है। यह देखकर मेरी छोटी छडकी कमलेश घवराई




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