प्रेम - पंचमी | Prem Panchami

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Prem Panchami by श्री दुलारेलाल भार्गव - Shree Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्यु के पीछे अनुभव हुआ कि यात्रा उतनी सुखद नहीं है जितनी सममी ५ थी । लेखो के संशोधन परिवद्धन ्औौर परिवतेन लेखक- गण ॒ से पत्र-व्यवहार चित्ताकषंक विषयों की खोज और सहयोगियों से आगे बढ़ जाने की चिता मे उन्हें कानून का अध्ययन करने का झवकाश ही न मिलता था । सुबह को किताबे खोलकर बैठते कि १०० प्रप्ठ समाप्त किए बिना कदापि न उदगा कितु ज्यो ही डाक का पुलिदा झा जाता वह झधीर होकर उस पर ट्ट पढ़ते किताब खुली-को खुली रद जाती थी । वारंघार संकल्प करते कि अब नियमित रूप से पुस्तका- वलोकन करूँगा और एक निर्दिः समय से अधिक संपादन- कार्य में न लगाउँगा । लेकिन पत्रिकाओं का बंडल सामने आते ही दिल काबू के वाहर हो जाता । पन्नों को नोक-भोंक पत्रिकाओं के तक-वित्तक आलोचना-श्रत्यालोचना कवियों के काव्य-चमत्कार लेखकों का रचना-कौशल इत्यादि सभी बातें उन पर जादू का काम करती । इस पर छपाई की कठिनाइयों ग्राहक-सख्या बढ़ाने की चिता और पत्रिका को सवोंगसद्र बनाने की आकांक्षा आर भी प्राणां को संकट में डाले रददती थी । कभी-कभी उन्हें खेद होता कि व्यथे दी इस भमेले में पड़ा । यहाँ तक कि परीक्षा के दिन सिर पर आआ रए और चह इसके लिये बिलकुल तैयार न थे । उसमे सम्मिलित न हुए । मन को समभाया कि अभी इस काम का श्रीगणेश है इसी कारण ये सब बाधाएँ उपस्थित होती है। झगले वर्ष यदद




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