मेरी प्रिय कहानियां | Meri Priya Kahaniya(1959)

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Meri Priya Kahaniya(1959) by आचार्य चतुरसेन - Achary Chatursen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अम्बपालिका १७. भ्रम्बपालिका श्रपनी कृपा श्रौर प्रेम के चिह्भ-स्वरूप कभी-कभी ताज़े फूलों की एकाध माला तथा कुछ गन्ध द्रव्य उन्हें प्रदान कर दिया करती थीं । विधाज्ला ने मानों उसे स्वर्ण से बनाया था । उसका रंग गोरा ही न था उसपर सुनहरी प्रभा थी--जेसी चम्पे की श्रविकसित कली में होती है । उसके शरीर की लचक श्रज्ञों की सुडौलता वर्णन से बाहर की बात थी। उस सौन्दर्य में विशेषता यह थी कि समय का श्रत्याचार भी उस सौन्दर्य को मष्ट न कर सकता था । जैसे मोती का परत उत्तार देने से भीतर से नई श्राभा नया पानी दमकने लगता है उसी प्रकार श्रम्बपालिका का दारीर प्रतिवर्ष निखार पाता था । उसका कद कुछ लम्बा देह मांसल श्रौर कुच पीन थे। तिसपर उसकी कमर इतनी पतली थी कि उसे कटिबन्धन बांधने की श्रावश्यकता ही नहीं पड़ती थी । उसके श्रद्ध-प्रत्यज्ऑ चैतन्य थे मानो प्रकृति ने उन्हें बृत्य करने श्रौर आनन्द-भोग करने को बनाया था। उसके नेत्रों में सूक्ष्म लालसा की भलक श्रौर हृष्टि में गजब की मदिरा भर रही थी । उसका स्वभाव सतेज था चित्तवन में हढ़ता निर्भीकता विनोद श्ौर स्वेच्छाचारिता साफ भ्रलकती थी | उसे देखते ही श्रामोद-प्रमोद की श्रभि- लाषा प्रत्येक पुरुष के हृदय में उत्पन्न हो जाती थी । जेसा कहा जा चुका है उसकी रंगत पर एक सुनहरी भलक थी गाल कोमल भ्ौर गुलाबी थे भ्रोठ लाल श्रौर उत्फुल्ल थे मानो कोई पका हुश्रा -रसीला फल चमक रहा हो। उसके दांत हीरे की तरह स्वच्छ चमकदार श्रौर श्रनार की पंक्ति की तरह सुडौल कुच पीन तथा श्रनीदार थे । नाक पतली गर्दन हंस जैसी कन्बे सुडौल वाहु मृणाल जैसी. थी । सिर के वाल काले लम्बे श्रौर घूंघराले तथा रेशम से भी मुलायम थे । झांखें काली श्रौर कंटीली उंगलियां पतली श्रौर मुलायम थीं । उनपर उसके गुलाबी नाखूनों की बड़ी बहार थी । पैर छोटे श्ौर सुन्दर थे । जब वह ठसक के साथ उठकर खड़ी हो जाती तो लोग उसे एकटक देखते रह जाते थे । उसकी भ्रुजाश्ओों श्रौर देह का पुर्व भाग सदा खुला रहता था । ः वैशाली में बड़ी भारी बेचैनी फैल गई । श्रद्वारोही दल के दल नगर के. तोरण से होकर नगर से बाहर निकल रहे थे । प्रतिहार लोग श्रौर किसीको न




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