चंद वरदायी और उनका काव्य | Chand Varadayi Aur Unka Kavya

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Book Image : चंद वरदायी और उनका काव्य  - Chand Varadayi Aur Unka Kavya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन विद्या से प्रथ्योराज के मंत्रों कैमाव दाहिम पर वशीकरण करके चेहान-नरेश-गधिकृत नागौर नगर में चालुक्य राज्य की श्रान फेर दी । स्वप्न में इस बूत्तांत का परिचय पाकर चंद नागौर गया और अपने मंत्र बल से जैन की माया को विनष्ट कर दिया जिसके फल- स्वरूप केमास का उद्धार हुआ और चैह्ान दल की विजय हुई ( छंद २१२--३०७ स० १२ ) |) कार्ये-व्यस्त न होनेपर ऐथ्वीराज चंद से अपनी शंका-निवारणा्थ नाना प्रकार के प्रश्न किया करते थे | फाल्गण मास में लब्जा-त्याग श्र कार्तिक में दीप जलाने के कारण पूछे जाने पर चंद ने क्रमशः प्र० रा० की होली कथा और दीपमालिका कथा में उसका वर्णन किया | एक बार सरूगया से लोटकर जब महाराज प्रथ्वीराज सिंहासनारूढ़ हुए अन्य सामन्त- गण आये श्ौर चंद ने भी श्राकर पुष्पवर्षा की । तदुपरान्त नागौर के घट्टू बन की भूमि में गड़े हुए खजाने को खोद निकालने की चर्चा हुईं। सब के सहमत होने पर पट्टू बन की यात्रा की गईं । खजाने का पत्थर तोड़ते ही एक बड़ा भारी सभ निकला जिसे चंद ने अपने मंत्रबल से बाँघ लिया । बारह दाथ खोदने पर एक देव निकला जिससे अनेक प्रकार की माया रचकर लड़ाई ठान दी । चंद ने देवी से प्रार्थना करके दानव को मारने का वरदान प्राप्त किया । दानव पराभूत हुआ्ा । दुर्गा देवी का श्राह्मन करके चंद ने इस रात्स श्रौर घन की कथा जानी । चंद ने उक्त देव को भी प्रसन्न कर लिया श्रौर खजाना खोदने में उसकी सहायता प्राप्त की । सारा द्रव्य निकाला गया | पृथ्वीराज के बहनोई रावल समरसिंह ने चंद को मोतियों की माला मठ की । इस प्रकार चंद मे पथ्वीराज की सहायता की (स० २४) | देवगिरि के यादव राजा की कन्या शशिव्रता का हरण करने चलते समय महाराज को श्रपशकुन हुए । पूछने पर चंद ने कहा कि या तो विषम युद्ध शरथवा ग्रह-विच्छेद ही परिणाम समक पड़ता है श्रौर नरेश को कान्यकृब्जेश्वर जयचंद के बैर का स्मरण दिलाते हुए समकाया कि इस काम में दाथ देना मानो बैठे बिठाये भयंकर शत्र को जगाना है । परन्ठु वय पराक्रम राज्य और काममद से मत्त राजा ने उसकी सलाह की उपेक्षा करके दक्षिणी यात्रा का झमियान कर दिया ( स० २४. ) । इससे स्पष्ट है कि चंद निर्मीक भाव से उचित सम्मति देना श्रपना कत्तेव्य समझता था भले ही वह मान्य न हो | इसी समय में हम पढ़ते हैं कि दक्षिण-यात्रा का फल विषम हुआ । दिल्‍ली श्र कन्नौज साम्राज्यों की पारस्परिक श्र ता के अंकर दृढ़ हो गये श्रौर कालान्तर में इस विष- वृज्च ने दोनों महान शक्तिशाली हिन्दू शासन-केन्द्रों का विनाश कर डाला । कवि इस समय तक महाराज का परम विश्वास-माजन बन चुका था। घषर युद्ध में पराजित बन्दी शाह गोरी से दंड-स्वरूप पाया हुश्रा सारा सोना चंद के संरक्षण में रावल जी के पास चित्तौड़ भेजा गया था । रावल जी से बहुमूल्य दान प्राप्त करके कवि लौटा ( स० २६ ) । उज्जैन के राजा भीम ने प्रथम प्रथ्वीराज को झपनी कन्या देने का वचन दिया था |




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