बाबू साहब | Babu Sahab

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Babu Sahab by गिरिजादत्त शुक्ल 'गिरीश' - Girijadatt Shukl 'Girish'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाबूसाइब ८ माक-- झाज छापकी सेवा में ्ाया हूं किस लिए ? उनका आन्दोलन बढ़ता ही जा रहा है । मिस्टर घोष ने श्याप को यह पत्र दिया है । बाबूसाइब पत्र लेकर पढ़ने लगे । पढ़ चुकने पर बोले-- क्या कहूँ माकं हमारी और मिस्टर घोष की दॉत-काटी रोटी रही है हम दोनों साथ के पढ़ने वाले लैंगोटिया यार हैं । अब देखता हूँ कि बच्चा की शरारत से हमारी इस मित्रता में भी बल पड़ने वाला है । पर मैं क्या कर सकता हूँ लाचार हूँ । माक-- बात यह है कि हमाराओर श्याप का. व्यवहार जैसा कि श्राप स्वयं कह रहे हैं बहुत प्रेममय रहा है । छापने मुकमें श्ौर अजीत सिंह में कोई अन्तर नहीं समका इसी तरह मेरी बहन मिस घोष और प्रतिभा को भी एकसा समझा । यद्दी व्यवहार मिस्टर घोष का अजीत श्रौर प्रतिभा के साथ रहा है। इस कारण वे कोई ऐसा काम नद्दीं होने देना चाहते जिससे श्रापको कष्ट मिले । लेकिन हम लोगों के प्रति झजीत- सिंद का व्यवहार झच्छा नहीं दे। जिस कारखाने को मि० घोष ने अपने कलेजे के लहू से सींच कर पाला-पोसा हे श्र रब जिसके लिए मैं चोटी का पसीना एड़ी तक बहा रहा हूं उसको जान पढ़ता है अजीत बाबू ने तहश-नहस कर देने का निश्चय कर लिया है ।? बा० सा०-- झाखिर वह करता क्या हे ? मा०-- सुनिए । अजीत बाबू मजदूरों के पास उठते-बेठते हैं सो तो झापको मालूम दी है। इस उठने-बैठने में उनका ्रसली मतलब क्या है यद्द पीछे बतलाऊंगा पर उनका बद्दाना देश-प्रम श्रोर उपकार का होता है। वे यह कह कर मजदूरों को उत्तेजित करते हैं कि देखो तुम्ददारी कमाई से घोष




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