प्रेमचन्द और उनका युग | Premchand Aur Unka Yug
श्रेणी : समकालीन / Contemporary, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.88 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रेमचत्द और उनका युग प्रेमचन्द ने बेलदार को हिन्दी पढ़ाने का जिक्र अपने स्कूली जीवन के सिलसिले में किया है जिससे मालूम होता है कि उन्होंने तब हिन्दी का अभ्यास भी कर लिया था । उनका वह जीवन हिन्दुस्तान के औसत गरीब विद्यार्थी का जीवन था । एक वार महाजन से उधार न मिलने पर सिफ़ें रोटी का प्रबंध करनें के लिए उन्हें अपनी किताबें तक बेचनी पड़ी थीं । इसका मारमिक वर्णन उन्होंने इस तरह किया है-- जाड़ों के दिन थे । पास एक कौड़ी न थी । दो दिन एक-एक पैसे का खाकर काटे थे । मेरे महाजन ने उधार देने से इन्कार कर दिया था । संकोचवश में उससे माँग न सका था । चिराग जल चुके थे । में एक वुकसेलर की दूकान पर एक किताब बेचने गया । एक चब्नयर्दी-गणित- कुंजी दो साल हुए खरीदी थी अब तक उसे बड़े जतन से रखें हुए था पर आज चारों ओर से निराश होकर मेंने उसे बेचने का निश्चय किया । किताब दो रुपये की थी लेकिन एक रुपये पर सौदा ठीक हुआ । ( जीवन-सार ) । यह १९ वीं सदी का आखिरी साल था। किताब बेचते हुए उनकी मुला- क्लात एक मामूली स्कूल के हेडमास्टर से हो गई जिसने अठारह रुपये पर .. ईन्हें अपने यहां मास्टर रख लिया । इस तरह प्रेमचन्द ने बीसवीं सदी में प्रवेश किया । १९०४ में उन्होंने उर्दू-हिन्दी में ओरियंटल इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का स्पेशल वर्नाक्युकर इम्तहान पास किया । इसके बाद १९०५ में ट्रेनिंग कालेज से पढ़ाने की सनद पाई । उनके सर्टीफिकेट पर खास तौर से लिख दिया गया था कि वह हिसाब पढ़ाने के अयोग्य हे- फ्रण तुफ़रयफ्रीटते ६० (टदद हवदधिटाा2घ057 । १९१० में उन्होंने अंग्रेज़ी दर्शन फ़ारसी और इतिहास लेकर इंटर किया और १९१९ में अंग्रेज़ी फारसी और इति- हास लेकर बी. ए. किया । प्रेमचन्द को जहाँ वास्तविक शिक्षा मिली वे विदवविद्यालयं दूसरे ही थे । उनके अध्यापक लमही के किसान बनारस के महाजन और किताबों के नोट्स बिकवानेवाले बकसेलर थे । उनकी टेवस्ट- बुर्द वे सेकड़ों उपन्यास थे जो उन्होंने लाइब्रेरियों बुकसेखरों की दूकानों
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