प्राचीन हिंदी काव्य | Pracheen Hindi Kavya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( है ) चलती रही है श्रौर संत-मत के साथ मध्ययुग की भक्तिधाराओं पर भी उसका प्रभाव लक्षित है । भक्तिसाहित्य भी इस युग की प्रमुख प्रवृत्ति है । भागवत श्रव्यात्म रामायण पंचरात्र नारद भक्तिसूत्र शांडिल्य मक्तिसूत्र ब्रह्मवैवत्त पुराण गर्ग संहिता लघु मागवतस ( बोपदेव आदि रचनाएँ भक्तिवाद के भावनात्सक और सैद्धांतिक पद्च की हृष्टिट से महत्वपूर्ण हैं । इनका निर्माण इसी युग में हुद्रा । एक दूसरी प्रकार का भक्तिसाहित्य भी महत्वपूर्ण है । वह है स्तोत्र-साहित्य । जैनों . वैष्णुवों बौद्धों शैवां श्रौर शाक्तों में स्तोत्रों के रूप में उस युग का विशाल वाड्मय विकसित हुआ था । दिंदी के स्तोत्रों ( ठुलसी और विनयपदों ( सूर तुलसी विद्यापति ) में इस साहित्य की परंपरा का ही विकास है । इस प्रकार जहाँ तंत्रसाहिस्य की परंपरा ने संत-. साहित्य को पुष्ट किया वहाँ सक्तिवाद भागवत जसे महाप्ंथों का आधार लेकर चला । जयदेव के गतिंगोविन्द्म ( ११९१ ) ने परवर्ती युग में कृष्णुभक्ति साहित्य की पद-शैली श्र श्ंगार-भावना का भी नेतृत्व किया । उप युग की एक और महत्वपूर्ण साहित्यिक प्रदत्ति सूक्ति नीति वैराग्य धर्म शंगार और लोकव्यवहारसंबंधी रचनाओं में विजड़ित है । संस्कृत के सुभाषितों में यह सामग्री बहुत बड़े अंश में सुरक्षित दे । हिंदी के दोददासाहित्य पर इसका प्रभाव कम नहीं है। . परन्तु जहाँ युग की चिंता गवेघणा तर्क-बितक की प्रतिभा संस्कृत साहित्य के द्वारा प्रकाशित हुई है बहाँ जनता की भावना श्र साधना श्रपश्रंश और दिंदी काव्य के द्वारा प्रस्फुंटित हुई है । उसमें ब्राह्मण घर्म जाति-पाँति वर्णाश्रिम के प्रति द्याक्रोश स्पष्ट रूप से दिखलाई




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