केशव - कौमुदी भाग - २ | Keshav Kaumudi Part - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रे ) पाण्डित्य की तो बात ही न पछ्िये । बाण माघ भवभूति कालिदास तथा भास तक के सुन्दर प्रयोग श्रदूभुत विचार गम्भीर श्र क्लिध्ट अलंकार ज्यों के त्यों अ्युवाद किये हुये इस ग्रन्थ में रव्खे हैं । कुछ नमूने देखिये १-- रामच्द्रिका )--भागीरथ पथगामी गंगा को सो जल है ( प्रकाश र छंद ० ) ( कादम्बरी )--गंगाप्रवाह इव भागीरथपथप्रवर्ती ( कथामुख ) २-- रामचन्द्रिका ) श्रासमृद्रक्षितिनाथ ( प्रकाश ६ छंद ६४ ) ( रघवंदा ) अासमृद्रक्षितीश्ञानां ( प्रथम से ) ३--( रामचस्द्रिका )--विधि के समान हू विमानीकृत राजहंस ( प्रकाश २ चंद १० ) ( कादम्बरी )--विमानीक्तराजहंसमंडल कमलयोनिरिव ( कथामुख ) उ-- रामचन्द्रिका ) होमघम मलिनाई जहाँ ( श्रकादश २८ छंद ८ ( कादम्बरी ) यत्र मलिनता हविधूमषु ( कथामुख ). भू--( रामचन्द्रिका )--तरु तालीस तमाल ताल हिंताल मनोहर। _ मंजुल वंजुल तिलक लक्‌च कुल नारि केल वर ॥1 एला ललित लवबंग संग पु गीफल सोहेँ । सारी शुक कुल कलित चित्त कोकिल श्रलि सोहें ॥ ( प्रकाश ३ छंद नं० .१ (कादम्बरी।--ताल-लितक-तमाल-हिस्ताल-बकु ल-बहुले एला लता-कुलित- नारिकेलिकलापे लोललो घ्रघवली-लवंगपल्लवै --उल्लसिं - चत-रेण-पटदलै. प्रलिकुल-झंकार -- उन्मद-कोकिल-कुल-कलाप-कोलाहलािः इत्यादि । ् द (कथामूख ) ६--र्गु रामचन्द्रिका )--ब्णत केशव सकल कबि बिषस गाढ़ तस सृष्टि । ही कुपुरुष सेवा . ज्यों भई संतत मिथ्या दृष्टि ( प्रकाश १३ छंद २१ _. ( भासकृत बालचरित श्रौर चारुदत्त नाटकों में ) कि ......... लिस्पतीव तसोध्ड्भानि वर्षतीवाज्जनं नलभः ।.... .. श्रसत्पुरुकसेबेव . दृष्टिनिंष्फलताँं .. गता। कक य




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