नवीन समाज - व्यवस्था में दान और दया | Navin Samaj Vyavastha Me Dan Aur Daya

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मुनिश्री नगराज जी - Munishri Nagaraj Ji

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सोहनलाल बाफणा - Sohanlal Bafana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९६ बार समाज में श्रउपंण्यता व वैकारी फैला रहे हैं इसदा भी एक हृदय- द्वावी इतिहास बनता है। यहाँ तक कि पेशेदर मिश्ममंगे स्वस्थ बालकों भो विक्ताग कर उनसे ध्रपनी मिलखमगी का व्यवसाय चलवाते हैं। ऐसे अ्नेत्रों उदाहरण प्रत्यक्ष भनुमव में भ्राये हैं । विगत वर्ष वी धटना है देहनी में जब हम थे उसी समय एक जैन तेरापपी दम्पती लयमग १०-१२ वर्ष के एक बालक को साथ लिए दर्शनार्थ घ्ाये । उन्होंने बताया कि यह लड़वा गेरक वस्त्रपारी मिख- मगो के धगुस्त में था । यह बड़ा दुशखी था । कस हम लोगों ने इसे वहाँ से निकाला । पूछे जाने पर इस बालक ने हमें भ्पना जीवन-वृत्तास्त बनाया । उसने कहा-- मैं दक्षिण में बंगलोर के पास किसी एक एम में रहने वाले मिल-मजदूर वा बालक हूँ । एक दिन जब मैं घर रे ध्रूमने के लिए निकला था तब कुछ गेरक वस्प्रधारी बादा सोग मुभें मिले भौर मुझे मिठाई फल थादि खिलाये । फिर वे मुझे प्रपने साथ चलने का ापह करने तगे भौर बहा--तुम्हें दिल्‍ली ले घलेगे भोर वहाँ सिनेमा व भौर भी बहुत सारी थोजें दिललायेंगे । धापस यहां लाकर छोड़ देंगे । मैं चनके भुलावे में भरा गया । बहुत दिनों तक उनके साथ भटबता रहा । गेयक वस्त्र पहनाफर वे मुखे भी भपने साथ रखते श्रौर भीख मागने बा तरीका सिखलाते । एक दित एक सुनसान स्थान में उन्होंने जबरदस्ती मेरी जीम में लोदे का बड़ा वाँटा भार-पार कर दिया । इसगे मैं हीन दिन तक देद्ोश-सा पड़ा रहा । बुखार भी हुभा था । उसके वाद जीम में वह छेद स्थायी रूप से बन गया भौर ऊपर की ब्याधि धीरे-धीरे मिट चली । उसके बाद दहर में जाते समय मेरी जीभ के उस बनना य शमेए समया गुचा ने लोर सन्ति साइुलो । विदेंगमा व मुष्फेसु दानमन्र सखे रया 1 महुकारप्तमा जुद्ध जे मदन्ति श्रिस्मिया 1 नायापिश्डरया दन्ठा हेण बुन्चन्ति साइणों ४1 दशन अगहे




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