हिन्दी प्रयोग | Hindi Prayog

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Hindi Prayog by रामचन्द्र वर्म्मा - Ramchnadra Varmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी प्रयोग ८ भ्राठ फारसी के मादर बिदर और बिरादर तथा सँगरेजी के मदर फादर और ब्रद्र में इसलिए बहुत ही कम अन्तर है कि इन सब का मूल एक ही है । इघर कुछ दिनों से हमारे यहाँ दँगढा और मराठी आदि के भी कुछ दाष्द् चठने ठगे हैं । सुविधा बाध्य संभ्रान्त आदि दाब्द यद्यपि देखने में संस्कृत के से जान पड़ते हैं पर हैं वास्तव में बैंगला के देशज दाब्द । उपन्यास और धतिदब्द आदि हैं तो संस्कृत के दब्द पर आज-कल वे हिन्दी में जिन अर्थों में चलते हैं वे अर्थ दमने वैंगला से छिये हैं। इसी प्रकार लागू चात्दू प्रगति और माभार गादि दब्द मराठी से हमारे यहाँ आये हैं । इन दाब्दों को दम इसलिए विदेशी नहों कद्द सकते कि ये हमारे ही देश के दूसरे प्रान्तों के दाब्द हैं। इसी लिए ऊपर हमने इस वर्ग के शब्दों को परकीय कहा है । दाव्दों के सम्बन्ध में ध्यान रखने की कुछ और बातें भी हैं जो उनके अर्थों से सम्बन्ध रखनी हैं । पहली बात तो यह है कि सभी भाषाओं में बहुत से दाब्द ऐसे रहते हैं जिनके कई कई अर्थ होते हैं । शब्द जब तत्सम रूप में लिये जाते हैं तब यह आवदयक नहीं दोता कि उनके सब अर्थ भी लिये ही जायेँ । कभी ।तो दम उनके सब अयथे ले लेते हैं और कभी पक ही दो अर्थ छेते हैं । तत्सम शब्दों में कुछ ऐसे भी होते हैं जिनका अर्थ ऊिंग या वचन दूसरी भाषा में _ जाने पर बदल जाता है। कभी कभी पेसे शब्दों के साथ कुछ नये अथे भी जुड़ जाते हैं । दूसरी बात यह है कि तद्भव दाब्दों के लिए यह आवश्यक नहीं दे कि उनके वही अर्थ रहें जो उनके सूख दाब्दों के हों । हमारे यहाँ का कंगाछ दाब्द सं० कक्लाठ से निकछा हे जिलका अर्थ है दृड्डियों की ठठरी । इल ठठरी के छिए तो हम कट्टाल दाब्द का प्रयोग करते




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