स्वाधीनता संग्राम के सुनहरे प्रसंग | Swadhinta Sangram Ke Sunahare Prasang

Swadhinta Sangram Ke Sunahare Prasang by रूपनारायण - Roopnarayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खद्दर आदि वस्त्रो का उपयोग प्रारम करे । ऐसा ही एक प्रसंग दरियागज क्षेत्र मे स्थित रामजस हाईस्कूल से जुड़ा हुआ है जहाँ इन पंक्तियों का लेखक भी उस समय 89वीं कक्षा का विद्यार्थी था और जिसके इंग्लिश के शिक्षक श्री सपूरन सिंह टंडन थे। वे विदेशी कपड़े ही पहनते थे और नेकटाई व फेल्ट हैट लगाते थे। तब अनेक अध्यापकों ने विद्यार्थियों का आग्रह स्वीकार कर गांधी टोपी इत्यादि पहननी शुरू कर दी थी लेकिन श्री टडन अपनी जिद पर अड़े रहे। उन्होंने फेल्ट हैट सहित विदेशी वस्त्र त्यागने से इनकार कर दिया। परिणाम यह हुआ कि विद्यार्थियों ने उनकी क्लास का बहिष्कार कर उनसे पढ़ने से इनकार कर दिया । क्लास में आते थे और विद्यार्थियों के विरोध के कारण बगैर पढाए ही वापस चले जाते थे। यह स्थिति लगभग एक सप्ताह तक चली | आखिर विवश होकर स्कूल के हेडमास्टर प्रभुदयाल निगम (जो सीताराम बाजार कूचा माईदास के रहनेवाले थे) ने दखल दिया। वे क्लास में विद्यार्थियों को समझाने के लिए आए। विद्यार्थी हेडमास्टर साहब का बहुत सम्मान करते थे । हेडमास्टर साहब ने ऊनेक प्रकार से क्लास के विद्यार्थियों को समझाने का प्रयास किया कि वे श्री टंडन का बायकाट कर अपने भविष्य को खतरे में डाल रहे है। उन्होने यह भी कहा कि जब श्री टंडन विदेशी वस्त्रों का त्याग नहीं कर रहे हैं तो यह उनकी कोई मजबूरी भी हो सकती है जिस कारण वे हैट इत्यादि छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं लेकिन विद्यार्थी तो गाधी की आंधी मे उद्ध रहे थे। इसलिए उन्होंने हेडमास्टर साहब की सलाह को भी स्वीकार नहीं किया विद्यार्थी श्री टंडन का बहिष्कार करने पर अड़े रहे । अंत्त मे हेडमास्टर साहब ने क्रोधित होकर विद्यार्थियों से कहां कि जो विद्यार्थी श्री टंडन से पढ़ना नहीं चाहते हैं वे खड़े हो जाएँ । हेडमास्टर साहब गुस्से में थे। इसलिए विद्यार्थी भी कुछ सहम गए। अतः किसी ने भी खडे होने की हिम्मत नहीं की और सब एक दूसरे का मुँह त्ताकने लगे। आखिर मे इन पंक्तियों का लेखक खड़ा हुआ और कहा मै श्री टंडन से तब तक नहीं पढुूँगा जब सक वे विदेशी वस्त्र पहनना बंद नहीं करेंगे | हेडमास्टर साहब ने क्रोधित मुद्रा में हुक्म दिया कि मैं क्लास से बाहर निकल जाऊँ | हेडमास्टर साहब की आज्ञा का पालन करते हुए मैं अपनी जगह से उठकर क्लास रूम से बाहर जाने लगा तो उन्होंने पुनः हुक्म दिया कि मै अपनी किताबें भी साथ लेकर बाहर जाऊँ | मैं अपनी किताबें लेकर स्वाधीनता संग्राम के सुनहरे प्रसंग 2 19




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