दशरथ - नंदन श्रीराम | Dasharth Nandan Shree Ram

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डॉ राजलक्ष्मी वर्मा - Dr. Rajlakshmi Varma

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श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारी - Shree Chakravarti Rajgopalachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्६ ददारथ-तंदन श्रीराम गये और कहने लगे देवताओं को अपने अंतःपुर में रानियों के मती ग्रहण करो । इससे पू्नों बा जन्म स का प्रसाद लाया हूं तीनों इसे होगा । इस बात को सुनते ही सारा अंतःपुर प्रसन्नता से खिल उठा । दबरथ के तीन रानियां थीं । महा रानी कोशल्या ने पायस का आधा भाग पिया | गेप भाघा कोदाल्या ने सुमित्रा को दिया । सुमित्रा ने उसका आधा स्वयं पिया और जो बचा वह कंकेयी को दे दिया । उसके आधे को कंकेयी ने पिया और बाकी को दद्रथ ने पुन सुमित्रा को पीने के लिए दे दिया । परम दरिद्र को कहीं से खजाना मिल जाय तो उसे जेसी खुशी होगी वेसे ही ददारथ की तीनों रानियां फुली न समाई । उनकी आशा पूर्ण हुई । तीनों ने गर्भ घारण किया । कु. # ः ने लि + विश्वाभिन्न-वसिष्ठ-संघष यज्ञ से मिल पायस को पी जाने के फलस्वरूप तीनों रानियों ने गभे धारण किया । समय आने पर कौथल्यादेवी ने राम को जन्म दिया । उसके बाद कंकेयी ने भरत को । सुभिन्नादेवी के दो पुत्र हुए । थे लक्ष्मण और कात्रघ्त नाम से प्रसिद्ध हुए । कहा जाता है कि जिस प्रकार पायस का विभाजन हुआ उसी क्रम से चारों शिदुओं में भगवान विष्ण के अंकों क समावेश हुआ । सबसे अधिक राम में फिर लक्ष्मण में तत्पदचात भरत और दत्रघ्न में शेष बचे अंग का प्रवेश हुआ । यह बात कोई महत्व की नहीं है। भगवान को टुकड़े करके नापा या गिना नहीं जा सकता । परब्रह्मा मम भौतिक छास्त्र में नहीं बांध सकते । श्रति में गाया गया है 3 पुर्णमद पूर्ण सिदं पूर्णातु पुर्णमुदच्यते । ः पुणस्य पुर्णमादाय पृर्णसेवावदिष्यते ॥1 चारों कुमारों को राजकुमारोचित सभी विद्याएं सिखाई गई । उनके पालन-पोषण एवं पढ़ाई-लिखाई आदि की व्यवस्था बहुत ध्यानपूर्वक की गई। बचंपन से ही राम और लक्ष्मण के बीच विशेष प्रीति थी तथा भरत और दन्रुघ्न एक-दूसरे को बहुत प्रेम करते थे । यों मान सकते हैं कि जिस क्रम से रानियों ने पाग्रस पिया था उसी प्रकार बच्चों में परस्पर प्रम रहा । चारों पुत्रों के गुण कारये-कुदालता प्रीति तथा तेज दिन-प्रतिदिन बढ़ने




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