श्री दसम ग्रन्थ साहिब भाग - १ | Sri Dasam Granth Sahib Part - 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sri Dasam Granth Sahib Part - 1 by जोध सिंह - Jodh Singh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जोध सिंह - Jodh Singh

Add Infomation AboutJodh Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(१५) के स्वार्थ को देखना ।. श्रेय मार्ग की सिद्धि पर प्रेय तो स्वतःसिद्ध है । इन्हीं श्रेय और प्रेय को श्री गुरूग्रन्थ साहिब में गुरमुख आौर मनसुख कहकर प्रमात्मपरायणता और सदाचार का अ द्योपान्त उपदेश किया गया है । ज्योति सें ज्योति का सलच्लिवेश गुरु दानकदेव सहाराज से एक गुरुपरम्परा देश गुरुओं तक चली । भहसा भौर शान्ति के माध्यम से समाज में संगठन आत्मनिभेरता और सर्देव युरमुख रहने का भाव उत्तरोत्तर प्रखर होता गया । एक गुरु के निर्वाण होते ही उनका दिव्य तेज दूसरे गुरु-कलेवर में सचिविष्ट होकर उत्पीड़ित प्रजा भौर उत्पीड़क दोनों ही को गुरमुख माग॑ का सदुपदेश करता रहा । उत्पीड़क शासक अथवा उसके कृपापात्र भी गुरुओं के चमत्कार के आगे भनेक अवसरों पर नत हुए ।. फिर थी नित्य बढ़ते गुरु-परम्परा का प्रभाव भौर भारतीय समाज में उत्तरो्तर संगठन का जागरण देखकर शासन कठोरतम होता गया ।. यह शान्तरस का अभियान श्री गुरु नानकदेव जी महाराज श्री गुरु अंगददेव जी श्री गुरु अमरदास जी श्री गुरु रामदास जी तथा श्री गुरु भर्जुनदेव जी महाराज तक चला ।. गुरु अर्जुनदेव जी महाराज के समय में ही श्री गुरूप्रस्थ साहिब का संकलन हुआ ।. ज्यो- ज्यों गुरुपरम्परा का प्रभाव बढ़ता गया शिष्यों की संख्या और समाज में संगठन की वृद्धि उत्पन्न होने लगी त्यों-त्यों उनके विरुद्ध षड्यंत्रकारियों के कुचक्र भी बढ़ते गये ।. यहाँ तक कि मुगल बादशाह जहाँगीर की आज्ञा से पब्च्चम गुरु श्री अर्जुनदेव जी सहाराज का बलिदान हुआ । शास्त से वीररस का आविर्भाव शहीद होते समय गुरु अर्जुनदेव जी महाराज ने शिष्यों और समाज को पहली बार यह उपदेश किया कि परकाष्ठा को पहुंची शान्ति के विफल होने पर अब शक्ति के उपयोग का अवसर आ गया । यहीं से गुरुपरम्परा और उनके अनुगत समाज में वीररस का भी उदय हुआ | त्याग और तप के अतिरिक्त खड्ग भी उठा भौर तब से श्री गुरु हरगोविंद साहिब श्री गुरु हरिराय श्री गुरु हुरिकृष्ण अनेकों युद्ध एवं छापों मे आततायी शासन से मोर्चा लेते जूझते रहे । नवम गुरु श्री तेग्रबहादुर शहीद हुए । धीर से रोद्र-रस गुरु महाराजों की तलवार का लोहा ज्यों-ब्यों प्रखर हो गया शासन का जुल्म त्यों-त्यों बढ़ता गया ।. नवम गुरु श्री तेग्रबहादुर जी के बलिदान होते ही उसके सुपुत्र श्री गुरु गोविस्दर्सिह ने खुलकर शासन के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया ।. रौद्र ने वीररस का स्थान ग्रहण किया । बिजली के सदृश उन्होंने देश के कोने-कोने में घूमकर अतीत की वीर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now