इतिहास क्या है | Itihas Kya Hai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इतिहासकार और उसके तथ्य 11 की पुस्तक ही ज्यादा कर सकी है। इस विषय के कुछ विशेषज्ञों को मैं अपने इस वक्तव्य में बामिल नहीं कर रहा हूं। अगर 1945 की बम वर्षा में ये दस्तावेज नष्ट हो गए होते और बनंहाडें की पुस्तकों की कोष प्रतियां भी नष्ट हो जातीं तो कभी भी सुटन की पुस्तक की सत्यता और प्रामाणिकता पर प्रदनचिह्न नहीं लगाया जा सकता था । मूल दस्तावेजों के अभाव में इस तरह के कई प्रकाशित संकलन इतिहासकारों द्वारा कृतज्ञतापूवंक अपनाए जाते हैं और उन्हें पक्का प्रमाण साना जाता है । मगर मैं अपनी कहानी को एक कदम और आगे बढ़ाना चाहता हूं। आइए हम बनंहाड और सुटन को शूल जाएं । किसी युरोपीय इतिहास की पिछले दिनों घटी महत्वपूर्ण घटना को लें जिसमें भूमिका अदा करने वाले व्यक्तित्वों और व्यक्तियों के प्रामाणिक दस्तावेज हमें प्राप्त हैं। ये दस्तावेज हमें क्या बताते हैं ? दूसरी चीजों के साथ हमें उनमें बलिन के सोवियत राजदूत के साथ स्ट्रसमान की सेकड़ों वार्ताओं के और चिरचचेरिन के साथ प्रायः एक दर्जन वार्ताओं के विवरण प्राप्त हैं। इन विवरणों में एक बात भाम तौर पर देखी जा सकती है वह यह है कि इन वार्ताओं में स्ट् समान ही अधिक बोला है और उसकी बातचीत तक॑पूर्ण तथा विद्वसनीय है जबकि दूसरे पक्ष के तक॑ मामूली उलझे हुए और अविश्वसनीय हैं। राजनयिक वार्ताओं से संबंधित दस्तावेजों की यह एक परिचित प्रवृत्ति हैं। ये दस्तावेज हमें यह नहीं बताते कि वस्तुत हुआ क्या था बल्कि केवल यह बताते हैं कि स्ट्रेसमान के विचार से क्या घटित हुआ था या वहूं दूसरों को इस घटना के बारे में सोचने के लिए क्या दे रहा था या कि शायद वहू खुद जो कुछ उस घटना के बारे में सोचता था वही दिया गया था । सूटन और बनहाडं ही नहीं बल्कि खुद स्ट्रसमान ने तथ्यों के चुनाव की प्रक्रिया छुरू कर दी थी । अगर हमारे पास इन्हीं वार्ताओं के चिचेरिन द्वारा लिखे विवरण होते तो हम केवल यह जान पाते कि चिचेरिन उन घटनाओं के बारे में क्या सोचता था । मगर वास्तव में क्या घटित हुआ इसे इतिहासकार को नए सिरे से अपने दिमाग में पुरर्निमित करना होगा । तथ्य और दस्तावेज निश्चय ही इतिहासकार के लिए जरूरी होते हैं मगर वे उसके लिए अंधमरद्धा की वस्तु नहीं होते । रस्तावेज और तथ्य अपने आप में इतिहास नहीं ते और न ही इतिहास क्या है जसे थका देने वाले प्रदन के वे बने बनाए उत्तर फमककानातनल कुल सरकसशशिकशराल कनाा्यग्गाइबदडर्ा अत यहां मैं इस प्रदन पर विचार करूंगा कि आम तौर पर 19वीं झाताब्दी के इतिहासकार इतिहास दर्शन के प्रति इतने उदासीन क्यों रहे । इतिहास दर्शन दाब्द का भाविष्कार वात्टेयर ने किया था और तव से विभिन्‍न अर्थों में इसका प्रयोग होता आया है। लेकिन मुझे इजाजत दी जाए कि मैं केवल एक अथे में यानी इतिहास कया है इस प्रशन के उत्तर के रूप में इसका प्रयोग करूं । पद्चिमसी यूरोप




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