हिंदी काव्य की कोकिलाएँ | Hindi Kavya Ki Kokilayen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.73 MB
कुल पष्ठ :
291
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
गिरिजादत्त शुक्ल - Girijadatta Shukla
No Information available about गिरिजादत्त शुक्ल - Girijadatta Shukla
ब्रजभूषण शुक्ल - Brajbhushan Shukla
No Information available about ब्रजभूषण शुक्ल - Brajbhushan Shukla
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)त हिन्दी-काव्य की काक्लाएँ के कारय-क्तेत्र में अबवीश होने तक के समय में हमारी भाषा के न जाने कितनें उलट-फेर हुए । इस उलट फेर की चचो में प्रदत्त होने के लिए यहाँ उपयुक्त स्थान नहीं । इतना ही कहना उचित होगा कि महात्मा कबीरदास के समय में आकर बिक्रम की सातवीं शताब्दी ही से विकासोन्सुख हिन्दी-भाषा काव्य-भाषा का स्थान अहणु करने के सबंथा योग्य हो गयी थी । कबीर के समय में मुख-. र्मानों के राज्य की नींव भी सुद्ददढ़ हो चली थी और दैनिक सम्पक की वृद्धि के कारण हिन्दू तथा मुसलमान संस्कृति के एका- कार का श्रीगणेश हो गया था । ं कबीर का एकेश्वरबाद हिन्दू जनता को कुछ समय तक भले ही रुचा हो किन्तु कालान्तर में उसके प्रति उसको अरुचि हो गयी । कवीर रामानन्द के शिष्य और वैष्णव थे । उन्होंने अपनी ८ कविताओं में राम का गुशगान करने का प्रयत्न किया था किन्तु बह राम अनन्त था अपरिमित था और इसी कारण जन-साधारण. की बुद्धि-शक्ति से परे हो जाता था । ऐसी स्थिति में इस निराकार- वाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया अनिवाय्य थी | वॉद्धघम्म का ते विक्रम की सातवीं शताब्दी में प्राय लोप हो गया था किन्तु उसने समाज के हृदय -में धार्म्सिक भावना का विराग का सांसारिक कार्यों के प्रति उदासीनता का कद ऐसा संस्कार छोड़ दिया था जो विपरीत परिस्थितियों में भी किसी न किसी रूप मे व्यक्त होने के लिए अधीर था । विक्रम.की सालहवीं शताब्दी के पूवाद्ध के लगभग भारतवर्ष में किसी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...