हिंदी काव्य की कोकिलाएँ | Hindi Kavya Ki Kokilayen

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Hindi Kavya Ki Kokilayen by गिरिजादत्त शुक्ल - Girijadatta Shuklaब्रजभूषण शुक्ल - Brajbhushan Shukla

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

गिरिजादत्त शुक्ल - Girijadatta Shukla

No Information available about गिरिजादत्त शुक्ल - Girijadatta Shukla

Add Infomation AboutGirijadatta Shukla

ब्रजभूषण शुक्ल - Brajbhushan Shukla

No Information available about ब्रजभूषण शुक्ल - Brajbhushan Shukla

Add Infomation AboutBrajbhushan Shukla

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
त हिन्दी-काव्य की काक्लाएँ के कारय-क्तेत्र में अबवीश होने तक के समय में हमारी भाषा के न जाने कितनें उलट-फेर हुए । इस उलट फेर की चचो में प्रदत्त होने के लिए यहाँ उपयुक्त स्थान नहीं । इतना ही कहना उचित होगा कि महात्मा कबीरदास के समय में आकर बिक्रम की सातवीं शताब्दी ही से विकासोन्सुख हिन्दी-भाषा काव्य-भाषा का स्थान अहणु करने के सबंथा योग्य हो गयी थी । कबीर के समय में मुख-. र्मानों के राज्य की नींव भी सुद्ददढ़ हो चली थी और दैनिक सम्पक की वृद्धि के कारण हिन्दू तथा मुसलमान संस्कृति के एका- कार का श्रीगणेश हो गया था । ं कबीर का एकेश्वरबाद हिन्दू जनता को कुछ समय तक भले ही रुचा हो किन्तु कालान्तर में उसके प्रति उसको अरुचि हो गयी । कवीर रामानन्द के शिष्य और वैष्णव थे । उन्होंने अपनी ८ कविताओं में राम का गुशगान करने का प्रयत्न किया था किन्तु बह राम अनन्त था अपरिमित था और इसी कारण जन-साधारण. की बुद्धि-शक्ति से परे हो जाता था । ऐसी स्थिति में इस निराकार- वाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया अनिवाय्य थी | वॉद्धघम्म का ते विक्रम की सातवीं शताब्दी में प्राय लोप हो गया था किन्तु उसने समाज के हृदय -में धार्म्सिक भावना का विराग का सांसारिक कार्यों के प्रति उदासीनता का कद ऐसा संस्कार छोड़ दिया था जो विपरीत परिस्थितियों में भी किसी न किसी रूप मे व्यक्त होने के लिए अधीर था । विक्रम.की सालहवीं शताब्दी के पूवाद्ध के लगभग भारतवर्ष में किसी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now