हिंदी गद्य काव्य का उद्भव और विकास | Hindi Gadya Kavya Ka Udbhav Aur Vikas
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32.38 MB
कुल पष्ठ :
395
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. अष्टभुजाप्रसाद पाण्डेय - Dr. Ashtabhuja Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्व॒रूप-विवेचन पर निप्क्ष रूप में काव्य की परिभाषा कुछ इस प्रकार होगी । जिन दाब्दों से भावोद्रेक का उत्थापन हो तथा चमत्कारिक प्रणाली से भ्राह्वाद का प्रकाशन हो वही काव्य है । भ्रर्थातु काव्य वहू॒कवि-क्म हैं जिसकी भावना से चमत्कार से श्रनुप्रारित भावोद्रेक होता है । कवि हृदयतंत्री के स्वर भावाधिक्य में कंकत होकर जब दाब्दों के रूप में उन्मीलित प्रसरित तथा प्रवाहित होते हुए एक विशिष्ट स्वरूप धारण करते हूँ तो वहाँ काव्य के दर्शन होते हैं । श्रतः कि अतीत श्रनागत तथा वर्तमान सभी प्राणियों के धर्मों को उनके कर्मों को तथा उनके चित्र-विचित्र फलों को साक्षात् व्यवधान के बिना जानता है वह सर्वज्ञ स्वश्ास्त्रवित् होता है । विचारों की प्रौढ़ता ौर प्रतिभा की नवोन्मेषशालिनी कला कवि के काव्य में वैशिष्ट लाती है । मानव हृदय की भावुकता जब संकेत रूप से मौन भाषा में कवि से निवेदन करती है तो वह श्रपने हृदय-द्वार खोलकर वाणी के विन्दुप्ों से विश्व में पीयूप वषणण करता है। वस्तुतः वह मानवता के सद्गुणों का प्रतिनिधित्व करता है । उम्रकी स्वर- लहरी की सुधा निर्जीव को सजीव तया जड़ को चेतन बनाती है । उसकी रागिनी लोकोत्तर श्रानन्द॑ की विधायिका है । श्रानंद प्रस़्वण की यह शक्ति जिस कवि में जितना ही अधिक होगी उसका काव्य उतना ही चिरस्थायी स्फूतिमय एवं लोकजीवन के संश्लिष्ट प्रेम का भण्डार होगा । जगवु के बीच हृदय के सम्यक् प्रसार से कवि ऐकान्तिक एवं लोकवद्ध क प्रेम के दो स्वरूप उठाता है । प्रथम ससीम शभ्रौर द्वितीय असीम की परिधि में अवगुण्ठित होते हें । तुल्यानुराग की प्रतिप्ठा द्वारा कवि इसी प्रेम को प्रारावान श्रौर भौतिक कामनाशओं के सच्निवेद्य के पंकिल बनाता चलता है। मन के आनंदात्मक एवं दुःखात्मक श्रवयवों के मनोविकारों का यथाथं चित्रण ही कवि को इष्ट होता है । ऐसा करके वह पाठकों को परिस्थिति का ज्ञान कराता है भ्रौर हवित- श्रहित स्वयं सोचने को प्रेरित करता है । बौद्धिकता एवं सहदयता दोनों के संतुलित समन्वय से कवि मनुष्यता के उच्च स्वरूप का चित्र श्रंकित करता है । ये हश्य नित्य जगत में घटित होते हुए भी हमारे लिए श्रगोचर रहते हैं । कवि झपनी प्रतिभा के बल से इन मारमिक स्थलों को ढूढ़ लेता है । व्यक्ति विच्छिन्नता से हटकर समष्टि की ग्रोर जब कवि जाता है तो उसका प्रभाव व्यापक एवं गंभीर हो जाता है । झस्वेष- रात्मक प्रजा के बल से सामात्य विषय-उस्तु एवं हृश्यों में भी कवि झनूठी भावव्यंजता भर देता है। उसके वरद हस्त के स्प् से ही प्रत्येक वस्तु कुछ-न-कुछ मारमिकता से युक्त हो जाती है । मानव की रागात्मिका वृत्ति से सम्बन्धित श्रनुभ्ूति की तुला पर कसी श्ौर निखरी कल्पना अपनी मनोज्ञ कमनीयता के कारण काव्य की स्वाद व्यंजकता का १. गीता । छंकरानंद भाष्य पृ० ४४५८ । श्रच्युत ग्रस्थमाला हिन्दी टीका प्र० सं० ।
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