Sadhana by विद्यानन्द 'विदेह ' - Vidyanand 'Videh'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शरीर से सुखी भर मन से शान्त रहने पर भी मनुष्य एक न्यूनता सी श्रथवा एक श्रभाव सा अनुभव करता है। दारीर श्रौर मन दोनों ही भौतिक हैं । भौतिक होने के कारण दारीर श्रौर मन परिणामी हैं। परिणामी. की स्थिति शभ्रौर अ्रवस्था में निर्बाधता भ्रौर सततता नहीं हो सकती । सब सुनियमों का पालन करते श्रौर सब प्रकार की सावधानी व्तते रहने पर भी घटनाचक्ों प्राकृत कारणों तथा ऋत्वभि- स्थानों से शरीर के सुख श्रौर मन की शान्ति में व्यवधघान ्राते रहना श्रवद्यम्भावी है। श्रायु श्रवस्था साधन देश श्र काल के परिवर्तंनों से शरीर श्रौर मन पर सु श्रौर कु बुरा पर भला श्रनुकूल श्रौर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता ही है प्रौर तदनुसार शारीरिक व मानसिक परिणाम भी होते ही हैं। सुख श्रौर दुःख के चक्र में चक्राते चक्राते शान्ति आर श्रद्यात्ति के भूले में भूलते भूलते सु शभ्ौर कु के परिणामों में श्रदलते बदलते मनुष्य छटपटाने लगता है एक ऐसी भ्रवस्था के लिये जो सु कु सुख दुःख शान्ति श्रज्ान्ति परिणाम परिवर्तन हृुषें विषाद श्रादि दन्दों से रहित शभ्रौर ऊपर हो जिसमें निर्बाधता हो जो सतत हो । उस इन्द्ातीत निर्बाध सतत श्रवस्था का नाम है शभ्रानन्द । श्रानत्द का सम्बन्ध श्रात्मा से है। जिस प्रकार सुख दारीर का विषय है शान्ति मन का विषय है उसी प्रकार श्रानन्द भ्रात्मा का विषय है । जिस प्रकार शरीर की नीरोगता श्रौर . स्वस्थता से सुख की प्राप्ति होती है मन के निश्टिचन्त चिन्ता- रहित होने से शान्ति की उपलब्धि होती है वैसे ही जब झात्मा अनासकत निलेंप स्व-रूप में भ्रवस्थित सम श्रौर समाहित होकर श्रानन्दस्वरूप श्रानन्दघन ब्रह्म में स्थित होता श्9




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