Phirng Rog by इन्द्रसेन शर्मा - Indrasen Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१०. ) एस. सी. के झोर ५ साल मेडिकल काल़िज के व्यतीत कर के प्राप्त श्या है । इस के थतिरिक्त श्रांगल्भाषा की बी. ए. और हिन्दी ( पज्ञाब यूनिवर्सिटी की ) दिन्दी-प्रभाकर इत्यादि परीक्षाओं को उत्तीणं किया हुशा है । इतनी तैयारी के बाद मैंने इस काय में दाथ डावा है । मेरी कामना पूण द्ोगी या नहीं में नहीं कह सकता हूँ । सब परमेश्वर की इच्छाघीन है। पर एक मात्र हिन्दी जनता से ये झपील है कि उन्हें इस्र कार्य को सफल बनाने में कुछ न कुछ ॒दिस्सा ज़रूर बटाना चाइिए | अब मैं भ्पने पिता जी का अत्यन्त धन्यवाद करता हूँ । उन्होंने झावश्यक घनराशि देकर इस प्स्तक को छापने में मुख समथ बनाया है | झगर उनकी घनसम्बन्धी सद्दायता न होती तो ये पुस्तक शायद मुद्रथाबषय का सुख बिना देखे ही रद्द जाती । सु पर मेरे पूज्य छिता जी ने झपार कृपाएं की हैं । धौर इन कृपाश्चों सम्बन्धी उनके ऋण से मुक्त होना तो मेरे बिए सम्भव सा ही है । पर तो भी उनकी इस पुस्तक सम्बन्धी कृपा के प्रति मैंने यहाँ दो चार शब्द लिख कर अपनी कृतज्ञता का प्रकाशन किया है । यदि पाठकदून्द समकते हों कि इस पुस्तक से उनको कुछ लाभ हुशा है तो उन्हें अवश्य दी मेरे पिता जी का भी घन्यवाद करना चादिए क्योंकि ये उन्हीं की दी कृपा है कि जिससे वे इस मुद्वित पुस्तक को पढ़ने के लिए प्राप्त कर सके हैं । भपने उन गुरुओं का कि जिनके बरयों में बैठ कर मेंने झायुवे दू शिक्षा आराप्त की है में बहुत कृतश हूँ। भर उनके गुरु ऋण से मुक्त डोना बहुत कठिन है । यद्यपि वे इस पुस्तक को एक छोटी सी दृक्छिया समक कर स्वीकार करें ऐसी सेरी आथना है। उन गुरुसों में विशेष उद्खेखनीय नाम श्री पणिढत धमंदत्त ली श्र श्री डाक्टर राघाकृष्ण जीकेहें।




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