भौतिकी भाग 1 कक्षा 12 | Bhoutiki Bhag-1 Kaksha-12

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
12.58 MB
                  कुल पष्ठ :  
201
                  श्रेणी :  
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अरविंद कुमार - Arvind Kumar
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बी. के. शर्मा - B. K. Sharma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)और कार्यविधि दार्शनिक विवादों का विषय रही है  यहां हमें इसकी चर्चा नहीं करनी है । इस भाग के अंत में दिए गए विवेचनात्मक प्रश्न इन विषयों के संबंध में हमारे विचारों को अधिक स्पष्ट करने में सहायक हो सकते हैं । विज्ञान की प्रगति का मूल आधार सिद्घोत तथा प्रैक्षण (अथवा प्रयोग) में होने वाली पारस्परिक क्रिया है । विज्ञान सदैव गतिशील है । विज्ञान में किसी भी सिद्धांत को   अंतिम   नहीं कहा जा सकता और न ही वैज्ञानिकों में कोई विवादरहित सत्ता ही होती है । जैसे-जैसे प्रेक्षणों की व्यापकता तथा परिशुदूधता में संशोधन होते हैं अथवा प्रयोगों दूबारा नए परिणामों की पुष्टि होती है  तो प्रतिपादित सिद्धांतों दूवारा  यदि आवश्यक हो तो उनमें समुचित संशोधन करके उनकी भलीभांति व्याख्या की जानी चाहिए । बहुधा ये संशोधन अत्यंत गहन न होकर वर्तमान सिंदूधांत के ढाँचे में ही होते हैं । उदाहरण के लिए जब जोहानेस केप्लर (1571-1630) ने टाइकों ब्राह (1546-1601 दूवारा संग्रहीत  ग्रहों से संबंधित  विस्तृत आंकड़ों का परीक्षण किया  तो निकोलस कोपर्निकस (1473-1543) दूवारा कल्पित सूर्य केंद्रीय सिद्धांत (सूर्य सौर परिवार के केंद्र पर स्थित है) में आंकड़ों की समुचित व्याख्या करने के लिए ग्रहों की वृत्ताकार कक्षाओं को दीर्घवृत्तीय कक्षाओं की धारणा से प्रतिस्थापित करना पड़ा । फिर भी यह संभव हो सकता है कि वर्तमान . सिद्धांत नवीन प्रेक्षणों की पर्याप्त व्याख्या करने में समर्थ न हो । इससे वैज्ञानिकों को चिन्तन करने के अवसर मिलते हैं जिनके परिणामस्वरूप विज्ञान में महान परिवर्तन होते हैं । बीसवीं शताब्दी के आरंभ में वैज्ञानिकों ने यह अनुभव क्रिया कि उस समय तक सर्वमान्य न्यूटनी यांत्रिकी परमाण्वीय परिघटना की कुछ मूल विशेषत्ताओं की व्याख्या करने में सफल नहीं है । इसी प्रकार उस समय तक सर्वमान्य प्रकाश का तरंग गति सिद्धांत  भी   प्रकाश-विद्युत् प्रभाव   की व्याख्या करने में समर्थ नहीं था । वैज्ञानिकों ने इन विषयों पर अध्ययन किया जिसके परिणामस्वरूप परमाण्वीय तथा आण्विक परिघटनाओं को भलीभांति समझने के लिए मूल रूप से एक नई यांत्रिकी (क्वान्टम यांत्रिकी) का विकास हुआ । जिस प्रकार कोई नया प्रयोग किसी वैकल्पिक सैद्धांतिक प्रतिरूप के विचार को जन्म दे सकता है  उसी प्रकार कोई सैद्धांतिक प्रगति किसी प्रयोग में   क्या देखा जाए  के संबंध में सुझाव दे सकती है । सन् 1911 में .अर्नेस्ट रदरफोर्ड (1871- 1937) दूवारा किए गए ऐल्फा कणों के प्रकीर्णन के प्रयोग ने परमाणु के नाभिकीय प्रतिरूप की स्थापना की जो सन् 1913 में नील बोर ( 1885-1962) दूवारा प्रतिपादित हाइड्रोजन परमाणु के क्वान्टम सिद्धांत का आधार बन गया । वहीं दूसरी ओर  सन् 1930 में पॉल डिरैक (1902-1984) ने सबसे पहले सैद्धांतिक रूप से प्रतिकण की अभिधारणा प्रस्तुत की जिसकी पुष्टि दो वर्ष बाद कार्ल एन्डरसन की पॉजीट्रान (प्रति-इलेक्ट्रॉन) की प्रायोगिक खोज दुबारा हुई । भौतिकी  प्राकृतिक विज्ञान की श्रेणी का एक आधारभूत विषय है जिसके अंतर्गत रसायन विज्ञान तथा जीव विज्ञान जैसे अन्य विषय भी सम्मिलित हैं ।  शाफां०5  शब्द ग्रीक भाषा के एक शब्द से व्युत्पनन हुआ है जिसका अर्थ है  प्रकृति  । यह संस्कृत भाषा के शब्द भौतिक (878001 8) के समान है जिसे  मौतिक  जगत के संबंध में प्रयोग किया जाता है । इस विषय की परिशुदूध परिभाषा देना न तो संभव ही है और न ही आवश्यक । मोटे तौर पर हम भौतिकी का वर्णन प्रकृति के मूलभूत नियमों का अध्ययन तथा उनको विभिन्न प्राकृतिक  परिघटनाओं में अभिव्यक्ति करने वाले विषय के रूप में कर सकते हैं । भौतिकी के कार्यक्षेत्र का संक्षिप्त वर्णन अगले अनुभाग में किया गया है । यहां हम भौतिकी के दो प्रमुख विचारों- एकीकरण तथा न्यूनीकरण पर ही अपना ध्यान केंद्रित करेंगे । भौतिकी के अंतर्गत हम विविध भौतिक परिघटनाओं की व्याख्या कुछ धारणाओं और नियमों के पदों में करने का प्रयास करते हैं । इसका उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों और दशाओं में भौतिक जगत को कुछ सार्वत्रिक नियमों की अभिव्यक्ति के रूप में देखना है । उदाहरण के लिए  स्यूटन दुबारा प्रतिपादित वही गुरुत्वाकर्षण का नियम सेव के पृथ्वी पर गिरने चंद्रमा दूवारा पृथ्वी की परिक्रमा करने तथा ग्रहों दूवारा सूर्य की परिक्रमा करने का वर्णन करता है । इसी प्रकार  विद्युत-चुंबकत्व के मूल नियम (मैक्सबैल की समीकरणें) सभी (स्थूल) वैदूयुत तथा चुंबकीय परिघटनाओं को नियंत्रित करते हैं । प्रकृति के मूलभूत बलों को एकीकृत करने वाले प्रयास  एकीकरण के इसी अन्वेषण को प्रतिबिम्बित करते हैं (अनुभाग 1.4 देखिए) किसी अपेक्षाकृत बड़े तथा अधिक जटिल निकाय के गुणों को इसके सरल अवयवी अंगों की पारस्परिक क्रियाओं और गुणों से व्युत्पनन करना एक संबद्ध प्रयास है । यह उपागम  न्यूनीकरण  कहलाता है और यह भौतिकी का अंत सार है । उदाहरण के लिए  उननीसवीं शताब्दी में विकसित ऊष्मागत्तिकी का विषय स्थूल निकायों से स्थूल राशियों जैसे- ताप  आंतरिक ऊर्जा  एन्ट्रॉपी (उत्क्रम-माप) आदि के पदों में व्यवहार करता है । तदनंतर में अणुगति सिद्धात और सांख्यिकीय यान्त्रिकी विषयों ने स्थूल निकायों के आण्विक अवयवों के गुणों के रूप में इन्ही राशियों की व्याख्या की । विशेष रूप से यह देखने में आया कि किसी निकाय का ताप उस निकाय के अणुओं की औसत गतिज ऊर्जा से संबंधित है । 1.2 भौतिकी के कार्यक्षेत्र तथा अंतर्निहित रोमांच भौत्तिकी के कार्यक्षेत्र का अनुमान हम इसकी विभिन्न उपशाखाओं . को देखकर लगा सकते हैं । मूल रूप से इसके दो ही प्रभाव क्षेत्र हैं-स्थूल तथा सृक्ष्म । स्थूल क्षेत्र के अंतर्गत प्रयोगशाला  पार्थिव तथा खगोलीय स्तर की परिघटनाएं आती हैं जबकि सूक्ष्म क्षेत्र के अंतर्गत परमाण्वीय  आण्विक तथा नाभिकोय
 
					 
					
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at 2020-01-15 01:05:15"physics"