हिंदी भाषा के विकास में हिंदी साहित्य सम्मेलन का योगदान | Hindi Bhasha Ke Vikas Me Hindi Sahitya Sammelan Ka Yogdan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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15 हिन्दी भाषा का आदिकालीन स्वरूप प्राक़ृत और अपभ्रश रूपो से बहुत प्रभावित है। आदिकालीन भाषा के विकासात्मक नमूने उस समय के शिलालेखो ताम्रपत्रो अपभ्रश एव चारण - काव्यो मे उपलब्ध होते है। हिन्दवी अथवा पुरानी खडी बोली मे लिखे साहित्य भी आरम्भिक हिन्दी के प्रचुर प्रमाण देते हैं । नागरी प्रचारणी सभा काशी ने समरसिह एव पृथ्वीराज के दरबारो से सम्बन्धित पत्र के नमूने प्रकाशित कर उन्हे हिन्दी प्रदेश की भाषा होने का प्रमाण दिया। शुक्ल जी ने आदिकालीन साहित्य- सामग्री के प्रारम्भिक भाग को अपभ्रंश - काव्य तथा चारणो के गाथा साहित्य को डिगल-पिगल की सज्ञा प्रदान की। डिगल और पिगल में अन्तर स्पष्ट करते हुए उन्होने लिखा है प्रादेशिक बोलियो के साथ-साथ ब्रज या मध्य देश की भाषा का आश्रय लेकर एक सामान्य साहित्यिक भाषा भी स्वीकृत हो चुकी थी जो चारणो में पिगल भाषा के नाम से पुकारी जाती थी। अपभध्रंश और शुद्ध राजस्थानी भाषा के योग का जो साहित्यिक रूप था वह डिगल कहलाता था। आदिकाल की हिन्दी मे मिलने वाली वीरगाथाए डिगल भाषा मे लिखी गयी है। भाषिक अध्ययन की दृष्टि से आरम्भिक हिन्दी भाषा मे दो प्रकार की रचनाएं प्राप्त होती है। १- अप्रभश भाषा की रचनाए २- देशी भाषा की रचनाएं अपभ्रंश मिश्रित रचनाओं मे मुख्यत - विजयपाल रासो हम्मीर रासो की कीर्तिलता एव कीर्तिपताका के नाम आते है। देशभाषा की कृतियो मे खुमाण रासो बीसलदेव रासो पृथ्वीराज रासो जयचन्द्र प्रकाश जयमयकजसचन्द्रिका परमाल रासो खुसरो की पहेलियाँ एवं विद्यापति की पदावली का उल्लेख मिलता है। इसी काल मे अवहट्ट भाषा मे संदेशरासक पुरातन प्रबन्ध संग्रह प्राकृत पैगलम वर्णरत्नाकर रचे गए हैं। १... हिन्दी साहित्य का इतिहास -आचार्य रामचन्द्र शुक्ल - पृ० ३७




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