महासमर अधिकार - 2 | Mahasamar Adhikar Bhag 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Mahasamar Adhikar Bhag 2  by नरेन्द्र कोहली - Narendra kohli

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नरेन्द्र कोहली - Narendra kohli

Add Infomation AboutNarendra kohli

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मे नहीं उखाड़ पाया माँ कि दे पक दुद्दू है तू शुंती हँसी तेरी जड़ें हैं ही कहाँ जो कोई तुमे जड़ उलाड़ सके । हर बुद्दू की मुक्ते बुद्ध कहती हो। मीम हुमककर बोला तुमने ध्यान नही दिया माँ कसा चतुर हूँ मैं कि ऐसा लेल चुना है जिसमें कभी मैं पराजित हो ही नहीं सकता जब कभी उखड़ा पेड ही जड़ से उलडेगा मैं तो उसड़ सकता ही नहीं न ही कुछ बोली नही सम्मो हित-सी अपने इस चिताशुन्य उन्मुक्ते पुत्र को देखती रही । ऐसा ही कही युषिष्ठिर भी हो पाता तो डे हरे इन हेलों के नियम कौत बनाता है? क्षण-मर रुककर कुंती ने पूछा । कल पे स्वयं बनाता हूं स्का संद लोग कि नियम बनाने लगेंगे तो खेल संभव कंसे होंगे? व ने उसे उकसाया । घोती बाँघने के सब अपने-अपने नियम बना लेते हैं तो भी सबके लिए चोती बाँधना संभव होता हैन कुंती चकित नेत्रो से उसे देखती रही धोती बॉँघने का नियम ? हाँ भीम बोला मेरी धोती एड़ी से बीस मंगुल ऊँची होती है और सुयोधन की चार अंगुल वह मानता है कि नियमतः थोती एंड्री से चार अंगुल ही ऊेची होनी चाहिए । इसलिए वह मुझे गंवार कहवा है मौर मैं उसे भूखे वह इतना भी नहीं समझता कि एड़ी तक घोती बाँघकर व्यक्ति न भाग सकत है न दौड़ सकता है न खेल सकता है सहसा भीम जैसे निद्रा से जागा बरे मुझे तो खेलने जाना है मैं तुम्हारी बातों में ही उत्तक गया । हुम्हारी वातों की मोहिनी से बचना कठिन है माँ वह भागता हुआ बाहर निकल गया 1 भीम चला गया ओर उसे कदाचित्‌ स्मरण भी नहीं रहा कि वहर्माँ से क्या कहकर माया है कितु कुंती की वह वंसे हो भकमोर गया जैसे यह अपनी शक्ति को परलने के लिए वुज्नों को झऋकमोरा करता है हस्तिनापुर में प्रदेश से पहले वर्धमान द्वार के बाहर ही यात्रा से थके आए धूल-धूसरित उसके पुदों को देखकर सुपोयन ने उन्हें गंदा कहा था उसकी वेग-भूपा के प्रति अपनी वितुष्या प्रकट की थी । वहू आज भी भीम को गेवार कहता है। युिप्टिर और बर्जुन को क्या कहता होगा नझुल और सहदेद तो अमी छोटे हैं वह स्वयं को इन सबसे श्रेष्ठ मानता है इसलिए कि वह हस्तिनापुर के राजी दें यद में पत्ता या और कुंदी के पुत्र आश्रम के सात्विक अधिकार | 15




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now