हिन्दुस्तान की समस्यायें | Hindustan ki Samsyayen
श्रेणी : इतिहास / History, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.61 MB
कुल पष्ठ :
292
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पंडित जवाहरलाल नेहरू -Pt. Javaharlal Neharu
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दुस्तान की समस्यायें ७ कायम हों लेकिन इमका मतलव ह-- आडादी दब्द खास तौर से इसी बात पर जोर देने के लिए इस्तेमाल किया गया है--कि हम ब्रिटेन से साम्ाज्यवादी सम्बन्ध तोड़ देना चाहने हैं । अगर साम्पाज्यवाद इग्लेड में रहता है तो हमें जरूर हो उससे अलग होजाना चाहिए क्योकि जवतक इग्लेड में साम्ाज्यवाद हैं तदतक इग्लेंड और हिन्दुस्तान में अगर विसी सम्बन्ध की समावना हो सकती हो तो वह किसी-न-किसी रुप में सिर्फ साम्भाउयवादी दासन की ही होगी । वह सम्बन्ध चाहे दिनो दिन हवाई ही होना जाय चाहे वह जितना स्पप्ट है उससे और कम स्पप्ट होजाय चाहें वह राजनेतिक पहलू पर भी स्पप्ट न हो और फिर भी चाहे उसका भाधिक पहलू वहुत मजबूत हो । इसलिए साम्याज्यवादी प्रिटेन की परिमापा में आज़ादी का मतछव हिन्दुस्तान का इग्लैण्ड से अलहदा होजाना हूँ । जहाँतिक मेरा सम्बन्ध है में तो सोच सकता हूँ और इस विचार क स्वागत भी करूँग कि इंग्लेंड और हिन्दुस्तान के बीच सम्बन्ध रहें लेकिन उसकी बुनियाद साम्राज्य न होकर शर कुछ हो 1 दसण सवाछ है-ल् विदा माप बीच में एक परिवर्तनकाल की उरूरत देखते हूं ? यदि हाँ तो कया भारतीय दासन-विधान से किसी तरह वह उरूरत पुरी होती हूं ? अगर नहीं तो दूसरे उपाय कया करने चाहिएं 7 जब कभी कोई परिवर्तन होता हैं हो लाज़िमीतौर पर बीच की चीड़ें वदल जाती है छेकिन अक्सर ऐसा होता है कि सरकार का ढाचा कुछ-कुछ स्थिर होजाता हैं और जल्दी-जत्दी नहीं बदलता । आधिक शीर दुसरे परिवर्तन तो होने ही रहते है बयोकि थे कानूनी और नियमों के लिए रुकते नही हूं । वे बदलने रहते हैं छेक्नि सरकार वा ढांचा नहीं बदलता । नतीजा यह होता हैं कि कमी-कमी खास हालतों में एसी हतचलें मच जाती है जो सरकार के ढाये को जबरदस्ती बदल देनी हूं । उन्हें क्रान्ति वहते है । लेकिन उस हालत में भी परिवतंत-काल होता हैं । में समझता हूं कि इम सवाल से आपका मतलव वीच के काल
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