सुदामा के चावल | Sudama Ke Chawal

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Sudama Ke Chawal by कृष्ण गोपाल - Krishan Gopalश्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर - Shripad Krushna Kolhatkar

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श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर - Shripad Krushna Kolhatkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका पद्रह अतगत किन किन भावा का समावेश होता है कौन कौन से मनोविवार किन भावों के साथ सलग्न हैं उनका हास्य विनोद के साथ क्या सबध है भर उनके पात प्रतिघात से हास्य विनोद वी निमिति विस प्रकार होती है इसवी विस्तृत विवेचना इस सूची मे की गई है । हास्य विनोद के लिए--पणा0ए1-- यह व्यापक सशा निश्चित करके उसके श्लेप या शब्दनिष्ठ विनोद ( कप) उपहास या व्यंग्य (88006) उपरोध था वक्रोदिति (59८8521) गालीप्रधान (पएश८८४८) युढाक्ति . (क0०7) छंदुम हास्य (53600100 विडबन (970) दुच्छता वृत्ति (0८500) आदि प्रभेद माने गएं हैं और उनके अलग-अलग सक्षण भी दिए गए हैं । समाजवुघार को व्यग्य का मुख्य उद्देश्य मान लिए जाए तो सामाजिक कुरीतियो और हानिप्रद प्रथाओ पर प्रहार करना उसका प्रधान काय हो जाता है जिसे प्राप्त करने मे व्याजोवित भमौर अतिशयोवित सबसे प्रभावी साधन सिद्ध होती है । इस सँंद्धातिक इष्टि से विचार करने पर सुदामा के चावल वा समावेश निषिवाद और निरपवाद रूप से ब्यग्यात्मक सहेतुक विनोद के अतगत होता है सानय जीवन की विनोदात्मक टोका णव साहिस्यिक विधा के रूप में व्यग्य यां उपहास की यह व्याण्या भी की जाती हैं कि घहू मनुष्य भात्र के अज्ञान और सुखताओं एवं मानव जीवन की लुटियां भौर अप्रणताभा पर की गई विनोदात्मक टीका है। शत सिफ इतनी है कि यहू टीवा कलात्मक और यधासभव वेयक्तिक दशरहित होनी चाहिए। शारनेंट के कथनानुसार व्यग्य मे यदि विनोद का पुट नहीं हुआ तो बह निंदा या कुत्सा का रूप धारण कर लेता है और कलात्मकता न हुई तो वह निम्न कोटि का बिदूपकी विनोद बन जाता है । अत उच्च कोटि के व्यग्य मं दोषदशनपूण टीका के साथ विनोद का समवय होना नितात आवश्यक है । व्यग्यात्मक साहित्य समाज के हास्यास्पद पहलू को इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि पाठकों को ससका तीन्न निषेध करने वी इच्छा हो उठे । व्यग्यकार के प्रमुख हथियार व व्याजो किति वक्रो बित तुच्छताबुद्धि निंदा निभत्सना श्लेप और अतिशयोक्ति । परतु इन सब हृथियारो मे घार हास्य विनोद की ही होनी चाहिए। जुवेनाल के




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