महाभारत - मीमांसा | Mahabharat Mimansha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रिकषसत राजगदका संक्षिप्त वृत्तान्त और उसके वतमान नरेशका परिचय । राजगढ़की रियासत उस प्रमार क्षत्रियवंशके श्रघीन है जिसके पूवंज उज्ज- यिनीके राजा चोर विक्रमादित्य थे जिनका सम्यत झाज दो सहस्र चषोसे चला झाता है । इसी चंशमें ऊमरजी भी बड़े प्रसिद्ध नरेश हुए हैं । उन्होंने सिन्धके उमर- कोटमें पक दढ़ दुर्ग स्थापित किया था इन्हों प्रसिद्ध वीरने उज्जैन नगरसे पचास कोखको दूरी पर उमरवाड़ीमें श्रपना राज्य स्थापित किया । खन रे ८८ ई० में जब इस प्रान्तके राजा मोहनसिंहजी थे उस समय दीवान परशुरामजीने इस राज्यकों दो भागोमें विभाजित कराया--एककी राजधानी राजगढ़ हुई झौर दूसरेकी नर- सखिहगढ़ । राजगढ़की गद्दी पर रावत मोतीखिंहजी साहब सातव राजा हुए । सन १८५७के बलवेमें श्रापने श्रंग्रेजोकी वड़ी सहायता की इससे प्रसन्न होकर सरकार ने झापको वंशपरंपराके लिए ग्यारह तोपौकी सलामीका सन्मान प्रदान नए । सन १८४० ई० में इनके पुत्र रावत बावरसिंहजी साहब गद्दी पर बेटे । श्रापकी योग्यता झंर स्पायप्रियता उच्च कोटिकी थी । श्रापने केवल दो वर्ष राज्य किया । सन्‌ ८८२ है० में झापके पुत्र रावत बलभद्रसिंहजी साहब गद्दी पर बिराजे । सन्‌ १८०५र्में जब मारक्षिस झाफ डफरिन भारतके गव्नर-जनरल थे उस समय शझापको सरकारने राज्ञाको पदवी बंशवरंपराके लिए दो । सन ९६०२में आपके पिठ्व्य राजा रावत सर विनयसिंह जी साहब गद्दी पर बैंे । श्ापने राज्यकी श्रसाधारण उन्नति की । झापके शासनकालमें बहुतसे नये नये मकान कोठियाँ महल सड़कें श्रादि बनीं और शिक्षाका प्रचार कर राजधघानीकी उन्नति की गई | श्रापने बहुत श्रच्छा विधाभ्यास किया था श्रपने समयके श्राप एकही दानी थे । श्रापके राज्य-प्रबन्धसे सन्तुष्ट होकर सखरकारने सन १&०८में श्रापको के० सी० श्राई० ई के पदसे विभूषित किया । शाप खन्‌ १६०३ के दिल्लो दरबार में सम्मिलित थे श्रोर श्रापकों एक खुवणंपदक भी मिला था | सन्‌ १६०५ में श्राप प्रिन्स श्र प्रिन्सेस श्राफ बेलससे श्रोर सन १८1 १९में सम्राद पंचम जाजसे मिले | तेरह वर्ष चार महीने राज्य करन पर सन ९८१६में श्रापका खर्गवास हो गया । झापके सर्गवासके पश्चात्‌ आपके खुयाग्य पुत्र राजा रावत सर वोरेन्द्रसिह जी साहब ब्रहादुर गद्दी पर देठे । ता० ११ माचे सन (८१८ को राज्यासिषेक हुआ | झापको शिक्षा इन्दोरके राजकुमार कालेजमें हुई । परीक्षोत्तीण होनेमें श्रापकों कई प्रशंसासूचक पदक मिले । श्ंगरेजी उर्दू श्रौर हिन्दीके श्राप झच्छे श्ञाता हैं । अंग- रेजी खेलकूद श्रंगरेजी भाप्य श्औौर झश्वारोहणमें आपकी बड़ी प्रसिद्धि है । श्राखेट- की श्रोर झापकी झत्यधिक रुचि है । केवल २६ चर्षकी झवस्थामें झ्ापने श्रलीतक




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