काशी संस्कृत सीरीज पुस्तक माला | Kashi Sanskrit Seires Pustak Mala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25.63 MB
कुल पष्ठ :
743
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्सू ० ध्प०] चास्त्रारम्मसमथनय 1 | अति बल कि जनता तथा भवितब्यप । कुतार्किकरि डनागप भरतिभिराहितमड्ा - ने॑ कुतार्किकाज्ञानानिति । (९-३) अधिगीतशिष्टाचारपरंपराघाप्त परमाशेष्रेन बार्तिककृता करता 5पीएदेव ता नमस्कारों ग्रन्थ न निवेशित। । न खल्वन्यदपि मड्लं घाखे निवेशितं प्रसिद्धतरतया मड़लान्तरवाच्छिष्या अवगपिष्यन्तीति सब्रेमव्रदातसू । तत्र संक्षपतः प्रथमसूत्रमनुय तस्व तात्परय्यमाह। प्रमाणा- दिपदाथतत्त्वज्ञानालतिश्रियसाधिगम इत्येतच्छास्त्रस्था- दिम्ूचसू । तस्थ-शाखस्य । अभिसम्बन्धवाक्यम् । आ- दिग्रहणेन क्रममाप्तस्येव प्रथम व्याख्यान युक्त न ट्वितीयादे रिति दर्दितमू । अभिपतसम्बन्धों इसिसम्बन्धः-दास्त्रानिश्रे- _ थसयोंहतुहेतुमज्वाव। तस्पेद सूत्र बवाक्यम अभिस- स्बन्घवाक्यम् । प्रमाणादपदाथतत्त्वज्ञानादित्यत्र दि तसवं ज्ञायत 5नेनेति व्युत्पत्या तन्वज्ञानें शाखमुच्यते । पश्चम्या च तस्थ हेतुत्वमू । न हि. विषधमन्त्रवत्स्वान्वयमात्रेण तदविवसिताय निःश्रेयसहतुरिति पदारधतर्वावगमकरणतया साखमुपादिशति न तु स्वरूपेण तन शाखस्य निःश्रेय॑ंसे कत्तेष्ये प्रपाणादितस्वावगमो 5वान्तरव्यापार इत्युक्तें भवति । तथा च पामाणादिपदा्थतरवं पतिपाय प्रतिपादकं च शाखमिति शाख्र- प्रमाणादिपदार्थतच्च यो ज्ञो प्यज्ञापक भाव अमाणादिपदाथेतरतर - ज्ञाननिःश्रयसया काय्य्रकारणभावलप्षणश्य सम्बन्ध सूचितों भवति । तदिदमामिघेयसम्बन्धम येजनमतिपादनाथेत्व॑ म्रथप- सुच्रस्थ । यरपदाथेतस्त्ज्ञानस्प च यथा निःश्ेयसाधिगमं प्त्यु- पयोगस्तथा उग्र निवेदयिष्यत । विनिश्चिताप्तभावा श्र मुनेरा - स॒त्वेन तद्वाक्यात्मयोजनादि विनिशित्य मवत्स्यन्ति । आाप-
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